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Saturday, October 31, 2020

झांझरिया : संजय कौशिक विज्ञात

नवगीत
झांझरिया 
संजय कौशिक विज्ञात 

मापनी 16/14

शुष्क पात की झांझरिया ने 
शांत चित्त झकझोर दिया।।

उजड़े पन की टीस उठी कुछ
उपवन बहरे चिल्लाये
करुण क्रंदन करते करते
राग फूट कर घबराये

और रागनी भूली कोयल
जब सुनने का जोर दिया
शुष्क पात की झांझरिया ने 
शांत चित्त झकझोर दिया।।

शून्य समान बिता ये जीवन 
हलचल सारी भूला था
अतिक्रमण कष्टों का रहता
भूल श्वास दुख फूला था

रात अमावस की जब बीती
पूनम जैसा त्योर दिया।
शुष्क पात की झांझरिया ने 
शांत चित्त झकझोर दिया।।


संजय कौशिक 'विज्ञात'

Friday, October 16, 2020

भूखी शिक्षा ; संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
भूखी शिक्षा 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी 8/10 

भूखी शिक्षा
बैठ गई पढ़ने।।

तख्ती सूखी
उसे याद घड़ियाँ
घड़ी कलम से
लिख बारह खड़ियाँ
खत जब नाचा
चाव लगा बढ़ने।।

उज्ज्वल शिक्षित
शिक्षा भी हर्षित
गाँव - गाँव में 
चर्चा में चर्चित
प्रथम रही है
अंक लगे चढ़ने।।

गर्व सोचता
ये क्षण हैं अपने
पूर्ण हुए सब
सच में ये सपने
देख हँसी फिर
शिक्षा निज गढ़ने।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'