नवगीत
झांझरिया
संजय कौशिक विज्ञात
मापनी 16/14
शुष्क पात की झांझरिया ने
शांत चित्त झकझोर दिया।।
उजड़े पन की टीस उठी कुछ
उपवन बहरे चिल्लाये
करुण क्रंदन करते करते
राग फूट कर घबराये
और रागनी भूली कोयल
जब सुनने का जोर दिया
शुष्क पात की झांझरिया ने
शांत चित्त झकझोर दिया।।
शून्य समान बिता ये जीवन
हलचल सारी भूला था
अतिक्रमण कष्टों का रहता
भूल श्वास दुख फूला था
रात अमावस की जब बीती
पूनम जैसा त्योर दिया।
शुष्क पात की झांझरिया ने
शांत चित्त झकझोर दिया।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'