नवगीत
मीठा राग मल्हार
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी
स्थाई/पूरक पंक्ति 12/11
अंतरा 12/12
फाल्गुनी गाती फिरे
मीठा राग मल्हार
यूँ अबीरी साँझ का
गूंजे आज प्रचार।।
पंखुड़ी भी पुष्प की
ठोकती है तालियाँ
प्रीत की गाथा यही
बोलती हैं बालियाँ
यूँ बयारी नृत्य का
देखा नव्य प्रकार।।
मस्त नाचे ये धरा
गीत के आभार पे
अम्बरों ने पुष्प से
बात बोली सार पे
भीगते से गात में
दौड़ा प्रेम प्रसार।।
रंग की बातें नई
यूँ वधू के मध्य में
हास्य गूँजे मोहिनी
पाश बाँधे वृध्य में
कौन ऐसे रोक ले
मारे देख प्रहार।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'