गीत
लौट कर परदेस का सच
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 14/14
लौट कर परदेस का सच
यूँ तिरंगा बोलता है
प्राण का रक्षक प्रमाणित
भेद मुख हिय खोलता है।।
मर्म अधरों से खुला ये
एक संजीवन तिरंगा
वैद्य विद्यार्थी कहें अब
सार शिक्षा ज्ञान गंगा
विश्व गुरु भारत बिना अब
केंद्र धरणी डोलता है।।
शत्रुता के भाव मृत से
कर रहा ध्वज नेक छाया
विश्व को कुनबा बनाकर
ध्वज दिखाता श्रेष्ठ माया
शूल पथ के ये हटाकर
नित पयोधर छोलता है।।
खंड विक्षत सा हृदय अब
चाहता है लौट आये
और वंदे मातरम् के
गीत फिर से गुनगुनाये
पाक भारत में समाकर
इक नया युग तोलता है।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'