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Saturday, March 7, 2020

गीत भीम का प्रतिशोध संजय कौशिक 'विज्ञात'





गीत 
भीम का प्रतिशोध 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी~~ 16/14 

देख द्रोपदी भीम अंजुली,
रक्त भरी ले केश धुला।
आज अतीत खड़ा है सन्मुख, 
वर्तमान में लिया बुला।

1
सौगंध उठाकर पूर्ण करी, 
अब भरतार तुम्हारे ने।
दुशासन की छाती फाड़ी,
भीम सखे इस न्यारे ने।
केश खुले कर स्नान सजा ले, 
बोला केशव प्यारे ने।
पूर्ण करो प्रण उद्यापन सा,
जीत लिया मन हारे ने।

अर्पित युद्ध विजय केशों को,
रखना मत अब इन्हें खुला।
देख द्रोपदी भीम अंजुली,
रक्त भरी ले केश धुला।

भीष्म पितामह शर शैया पर,
द्रोण कृपा गुरु भेंट चढ़े।
नारायण की सेना को भी, 
काल बली यूँ काट बढ़े।
एक शपथ या सौगंध बता, 
केश तुम्हारे भीम पढ़े। 
और लटा तुम खोल रही थी, 
कारण ये संघार गढ़े।

कौन अटल सच को झुठलाये, 
झूठ सका हैं कौन झुला।
देख द्रोपदी भीम अंजुली,
रक्त भरी ले केश धुला।

3
धर्म-पार्थ सहदेव नकुल के, 
शौर्य अलक सब लोग कहें।
कष्ट हृदय सुन केशव बोलो, 
कैसे हम ये तंज सहें।
दाह हस्तिनापुर शासन का, 
नेत्र हमारे नित्य बहें।
दोष कहाँ इसमें मेरा है, 
लोग लगा आरोप फहें।

आज पुनः सब सोच जरा लो, 
और उठाओ शब्द तुला।
देख द्रोपदी भीम अंजुली,
रक्त भरी ले केश धुला।

4
कुण्ड हवन की ज्वाला दहकी, 
अग्नि सुता सी जीम रही।
दहके हिय 'विज्ञात' कहे कुछ, 
जीभ भले दिख नीम रही।
और यहाँ पर किस कारण से, 
चीर फटे को सीम रही।
अलक खुले वो ज्वाला समझी,
गांधारी बन बीम रही।

दोष कहाँ तेरे केशों का,
मग्न खुशी मत और रुला।
देख द्रोपदी भीम अंजुली,
रक्त भरी ले केश धुला।

संजय कौशिक 'विज्ञात' 

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर गीत।
    होलीकोत्सव के साथ
    अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।

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  2. वाहहहह आदरणीय!!!!अद्भुत शब्द चयन के साथ एक शानदार रचना👌👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏

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  3. देख द्रोपदी भीम अंजुली,
    रक्त भरी ले केश धुला।
    आज अतीत खड़ा है सन्मुख,
    वर्तमान में लिया बुला।
    नारी सम्मान पर बहुत ही सुन्दर गीत
    महिला दिवस की बहुत बहुत बधाई गुरु देव

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