नवगीत
द्रवित हृदय
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~ 16/14
बाँसुरिया के स्वर हैं रूठे,
रूठ गई राधा रानी।
ठोस हृदय द्रव नेत्र बहाते,
लज्जित यमुना का पानी।
1
वृक्ष कदम्ब लगें सब सूने,
सूनी गोकुल की गलियाँ।
वृंदावन की बगिया पूछे,
बतियाती सी वो कलियाँ।
सर्व अदृश्य भ्रमर हैं तितली,
लौट गई मधु की डलियाँ।
प्रेम पराग उड़ा है जबसे,
मुरझाई हैं सब फलियाँ।
देख गोपनी फूट पड़ी जब,
देखे उद्धव से ज्ञानी।
ठोस हृदय द्रव नेत्र बहाते,
लज्जित यमुना का पानी।
2
शोक लहर का था सन्नाटा,
सूंघ गया मानो विषधर।
देख निमंत्रण पत्र वहाँ अब,
चर्चा थी सबके मुखपर।
अक्रूर बड़े निर्दय निकले,
व्याधि छिड़ी अन्तस् आकर।
उपवन की कोयल मुरली के,
रुद्ध स्वरों का था अवसर।
मौन बयार हुई मानो जब,
विधि ये सच सबने मानी।
ठोस हृदय द्रव नेत्र बहाते,
लज्जित यमुना का पानी।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बाँसुरिया के स्वर हैं रूठे,
ReplyDeleteरूठ गई राधा रानी।
ठोस हृदय द्रव नेत्र बहाते,
लज्जित यमुना का पानी
बहुत ही सुन्दर सृजन गुरु देव
नमन आप को और आप की लेखनी को
ReplyDeleteबाँसुरिया के स्वर हैं रूठे,
रूठ गई राधा रानी।
ठोस हृदय द्रव नेत्र बहाते,
लज्जित यमुना का पानी।
लाजवाब सृजन 👌👌👌👌
ठोस हृदय द्रव नेत्र बहाते,
ReplyDeleteलज्जित यमुना का पानी।
वाह आदरणीय अनुपम सृजन👌👌👌👌
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर आदरणीय आपकी यह रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
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