नवगीत
चुभती खुशियाँ
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~~ 14/14
बंद आँखें ढूंढ लायें,
स्वप्न वो आकर जगाता।
ये खुशी किसको गई चुभ,
हर्ष भी कितना रुलाता॥
1
आज कण्टक क्षण प्रफुल्लित,
और पुलकित वेदनाएं।
शूल उपवन में खिले से,
पुष्प रज-कण में समाएं।
दीप आँधी को भुलाए,
कर प्रकाशित जग दिखाता।
2
ये विरह शीतल लगा कुछ,
कल्पना करती मिलन जब।
क्षण ठहर हिमखण्ड जैसा,
श्वास सी जलती अगन तब।
वो समाहित सी सुगंधित,
भावना बन खिलखिलाता।
3
लोहबानी तन बना यूँ,
जो अधर छूते पिघलता।
या समर्पण मोम का था,
स्पर्श चकमक ही निगलता।
बन हिमालय आज मिलता,
उर्मियों को जो छकाता।
4
रागिनी का राग से फिर,
और निष्कासन हुआ जब।
फिर भ्रमर ने गीत गाया,
गुनगुना अन्तस् छुआ जब।
धुन मधुर डूबा खुआ जब,
प्रेम के किस्से सुनाता।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
लोहबानी तन
ReplyDeleteउत्कृष्ट
हार्दिक आभार अनिता जी
Deleteवाह वाह एक अलग अंदाज में नवगीत हुआ है
ReplyDeleteहार्दिक आभार रजनी जी
Deleteअद्भुद कल्पनातीत!!
ReplyDeleteजिस विषय पर एक पंक्ति आगे नहीं बढ़ पा रहे उस पर
अद्वितीय सृजन ।
वाह के सिवा कुछ नहीं।
हार्दिक आभार कुसुम कोठारी जी
Deleteगुनगुना अन्तस् छुआ जब।
ReplyDeleteधुन मधुर डूबा खुआ जब
बहुत सुन्दर👌
लता सिन्हा ज्यतिर्मय
हार्दिक आभार लता जी
Deleteबहुत सुंदर नवगीत विरोधाभास पर आदरणीय बहुत खूब अति सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार पूनम जी
Deleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार अतिया जी
Deleteअप्रतिम रचना सुन्दर प्रयोग नवबिंबों का
ReplyDeleteहार्दिक आभार अभिलाषा जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना सर जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार बोधन जी
Deleteअनुपम नवगीत
ReplyDeleteआ.सर जी शुभकामनाएं 🙏
हार्दिक आभार सविता जी
Deleteवाहः दादा बेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार तेज जी
Deleteविरोधाभास अलंकार का खूबसूरत उदाहरण है आपका नवगीत।ढेर सारी बधाई इस शानदार सृजन की 💐💐💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार विदुषी जी
Deleteइस रचना में चित्र से ही भाव बोध हो रहा है। बन्द आँखें............।दिव्य भाव का परिचायक है। विज्ञात जी की परिकल्पना श्लाघनीय है।अशेष बधाई!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रधान जी
Deleteअप्रतिम सृजन,,अनुपम बिम्ब सुंदर परिककल्पना से सज्ज नवगीत👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार वंदना जी
Deleteरागिनी का राग से फिर,
ReplyDeleteऔर निष्कासन हुआ जब।
फिर भ्रमर ने गीत गाया,
गुनगुना अन्तस् छुआ जब।
धुन मधुर डूबा खुआ जब,
प्रेम के किस्से सुनाता।
वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन सृजन गुरु देव
नमन आपको और आप की लेखनी को
हार्दिक आभार चमेली जी
Deleteबहुत खूब लिखा है जनाब
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteउत्कृष्ट नवगीत।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार बादल जी
Deleteहार्दिक आभार पम्मी जी
ReplyDeleteअद्भुत सृजन आदरणीय 🙏🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार पूजा जी
Deleteनि:शब्द...
ReplyDeleteलाज़वाब सृजन आदरणीय सर
सादर
हार्दिक आभार अनिता जी
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteघर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें।
भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हार्दिक आभार शास्त्री जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ओंकार जी
Deleteशानदार विरोधाभास अलंकार का प्रयोग 👌👌👌👌👌👌बहुत सुन्दर आदरणीय 👏👏👏👏
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनुपमा जी
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन
,🙏🙏🙏
हार्दिक आभार सुधा जी
Deleteकोमल भाव को विरोधाभासी अंदाज में लिखा एक सुंदर गीत । बधाई स्वीकारें ।
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