नवगीत
टूटी कलम
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~ 14/14
तोड़ दी ये लेखनी क्यों,
गूंजते वो गीत पूछें।
बादलों की पीर बहती,
फिर नयन बन भीत पूछें।
1
उर्मियों से भाव उमड़ें,
खिलखिलाती वेदनाएं।
आँधियों से तर्क देखा,
और उलझी सी लटाएं।
हार मेरी लिख चुकी थी,
प्रश्न मुझसे जीत पूछें।
2
कुछ नई सी कोपलों के,
शाख से जब युद्ध ठहरे।
फिर कलम लड़ती रही नित,
कौन देता दर्द गहरे।
व्यंजना का वर्ण दोहन,
सीखने की रीत पूछें।
3
स्वर कहें बहके हुए से,
बाँसुरी बज कर दिखादे।
हम नहीं दें साथ तेरा,
तू तनिक अस्तित्व लादे।
दूध से जो जल चुका था,
आज उससे सीत पूछें।
4
संग छोड़े जब तिमिर ने,
शेष सम्बल लुप्त छाया।
नित्य ठुकराया गया जो,
रिक्त है सब कुछ गँवाया।
त्याग कर खुशियाँ गई फिर,
और दुख मिल नीत पूछें।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
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