संजय कौशिक 'विज्ञात'
यमक अलंकार की चमक
उल्लाला भेद-१ के यमक अलंकार के कुछ उदाहरण देखें (13/13) ......
*सभंग अलंकार के उदाहरण-*
पाटा पा टा में धँसा, बैलों को भी कष्ट ये।
कैसे खींचे अब उसे, करता ऊर्जा नष्ट ये।।
पाटा- लम्बी धरन की तरह आयताकार लकड़ी जिससे जुते हुए खेत की मिट्टी को समतल करते हैं (जैसे—किसान खेत में पाटा चला रहा है)
पा- पैर, पाँव
टा- पृथ्वी
प्रस्तुत उल्लाला छंद का यह उदाहरण भी सभंग यमक अलंकार का एक सुंदर उदाहरण है देखने में आ रहा है कि इस छंद में पाटा शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है और दोनों ही बार रूप तथा अर्थ पृथक- पृथक हैं जो उपर्युक अर्थ में सही से समझ आ जाते हैं शब्दों के इस अनुपम चमत्कार के चलते यहाँ पर सभंग यमक अलंकार की सुंदर छटा व्याप्त है।
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काला सा का ला गया, अवसर आया मोक्ष का।
गंगा के तट स्नान फिर, मौका हैं ये चोक्ष का।।
काला- अँधेरा
का- छोटा
ला- ग्रहण
उल्लाला छंद का यह उदाहरण सभंग पद यमक अलंकार का उत्कृष्ट उदाहरण है। जिसमें काला शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। प्रथम काला शब्द उसके रंग को दिखा रहा है तो दूसरे में का और ला को विभाजित कर प्रयोग किया गया है जिस से शब्द के अर्थ में परिवर्तन होने के पश्चात शब्द अपना चमत्कार दिखाते हुए पूरे बंध को जोड़ते हुए एक सार्थक अर्थ प्रदान कर रहे हैं। यह प्रयोग अत्यंत प्रसंशनीय है। जिसका अर्थ है कि कालिमा लिए छोटा ग्रहण जा चुका है। जो कि पुण्य प्राप्ति के अवसर प्रदान करता है। ऐसे में गंगा तट पर स्नान विशेष फलदायक होता है।इसलिए यह विशेष अवसर पुण्य तथा शुद्धि प्राप्त करने का हैं।
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प्रस्तुत उल्लाला छंद भेद-१ के ये उदाहरण *अभंग पद यमक अलंकार* के सुंदर उदाहरण हैं जिनमें एक शब्द दो या दो से अधिक बार प्रयोग हुए हैं जिनके अर्थ पृथक-पृथक हैं जो निम्नलिखित हैं। इन शब्दों के चमत्कार दर्शनीय एवं सराहनीय हैं। ये अभंग पद यमक अलंकार के जीवंत उदाहरण हैं......
काँटे से काटे वजन, काँटे से कटती व्यथा।
काँटे कटती से मिली, ये है काँटे की कथा।।
काँटे - 1 धर्म काँटा, 2 शूल
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काँटे से कटता वजन, काटे कटता शूल भी।
कटने से राहत मिले, मिलती इनसे धूल भी।।
कटता- 1 घटना 2 निकालना
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लहरों के ये राग सुन, पानी ताले नित जहाँ।
पानी धारा स्तोत्र ये, वर्षा ऐसी हो कहाँ।।
पानी - 2 मोती 3 जल
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पानी लहरें ला रही, पानी पड़ता चून में।
पानी बिन जीवन नहीं, बँधता कब ये ऊन में।।
पानी-1 मोती, 2 जल,
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रोगों की आपत्ति से, औषधि को आपत्ति कब।
देते वैद्याचार्य जब, सम्बल सी आसत्ति सब।।
आपत्ति - 1 विपत्ति , 2 एतराज
आसत्ति - प्राप्ति
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अंतर से मिटता नहीं, अंतर इतना है अधिक।
अंतर थोड़ा कम बने, अंतर कहता अब तनिक।।
अंतर - 1 मन, 2 भेद, 3 दूरी, 4 शेष
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नेता सिर अपवाद था, फिर भी वह अपवाद है
जनता में अपवाद से, रहता किसको याद है।।
अपवाद - 1 कलंक, 2 नियम के विरुद्ध, 3 प्रचलित प्रसंग
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हरियल से आराम की, छाया में आराम कर।
यात्री ठहरे फिर चले, धरणी को यूँ धाम कर।।
आराम - 1 बाग, 2 विश्राम
यात्री - अतिथि (साधु)
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सुख-दुख सबके अंक के, जाने किसने अंक से।
केवल ममता अंक ही, रक्षा करती पंक से।।
अंक - 1 भाग्य, 2 संख्या, 3 गोद,
पंक- कीचड़, दलदल
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धरणी का अम्बर दिखे, अम्बर नीले रूप में।
बादल अम्बर से लगें, इस चुभती सी धूप में।।
अम्बर- 1 वस्त्र, 2 आकाश, 3 अमृत
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हारे कम अवकाश से, कर देते अवकाश अब।
लेते उस अवकाश को, होता क्यूँ ये नाश अब।।
अवकाश 1 अंतराल, 2 छुट्टी, 3 अवसर,
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श्लेष अलंकार
भँवरे गीतों की तड़प, धुन मतवाले रंग में।
अनुपम सी उत्कृष्ट हो, कलियाँ मांगे संग में।।
कलियाँ - अन्तरा , (अधखिले फूल) कलियाँ
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संजय कौशिक 'विज्ञात'
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बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी और खूबसूरत उदाहरण 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार गुरुदेव 🙏
यमक की चमक वाकई आकर्षक है 💐💐💐
बहुत सुन्दर यमक अलंकार से सुसज्जित ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यमक अंलकार की जानकारी और सुसज्जित ढ़ग से बहुत बढ़ियां🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteशब्दो का गजब मेल , अति उत्तम शब्दों में बयान नही कर सकता गजब लेखनी
ReplyDeleteयमक की चमक से उल्लाला छंद की शोभा में चार चाँद लग गये......अप्रतिम लेखन👌👌👌👌👏👏👏👏👏
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशुद्ध शास्त्रीय अध्यापकीय तेवर लिए है ये रचना काश हम भी आपके शिष्य होते -तीन बेर खाती ,ते वे तीन बेर खाती हैं। यमकीय छटा लिए सुंदर काव्य रचना अर्थपूर्ण
ReplyDeleteहरियल से आराम की ,छाया में आराम कर ,
यात्री ठहरे फिर चले , धरणी को यूं धाम कर।
आराम बाग़ की छाया में आराम कर
veerujan.blogspot.com
यमक अलंकार से सुसज्जित बहुत ही अद्भुत और ज्ञानवर्धक पोस्ट आदरणीय👌👌👌👌
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