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Thursday, April 22, 2021

नवगीत : बादल बनाते घर : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
बादल बनाते घर
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 11/14

2212 22
2122 1222

आहत हुआ अम्बर
और व्याकुल हुई धरणी
छाया सुनामी सा
झोल मारे धरा मरणी।।

आँधी चली बैरण
फोड़ती घाव नूतन से
लहरें रुदन करती
सिंधु का क्रोध भू तन से
बादल बनाते घर 
वज्र सी मार कर करणी।।

छाई खुशी बिखरे
कष्ट तांडव करे सिर पर
दिखते दिवस तारे
मृत्यु सौ नित रहे हैं मर
सूरज ग्रहण अवसर
कालिमा चर रही चरणी।।

यह शेर सी गर्जन
पाश अजगर निगलता सा
अटका शिखा में है
प्राण मुख में निकलता सा
भूकम्प के झटके
काँपती क्षिति लगे डरणी।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

5 comments:

  1. बहुत सुंदर नवगीत। नमन गुरूदेव।

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  2. बहुत सुदंर नवगीत 11/14 इस मापनी पर और भी बढ़ियाँ लय सजने लगा है बेहद खूबसूरत गीत बहुत सारी बधाइयां आपको गुरुदेव🙏🙏🙏👌👌👌👌🌹🌹🌹

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  3. बहुत सुंदर नवगीत

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  4. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही मार्मिक रचना ....हमेशा की तरह अनोखी शैली 👌

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