नवगीत
बादल बनाते घर
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 11/14
2212 22
2122 1222
आहत हुआ अम्बर
और व्याकुल हुई धरणी
छाया सुनामी सा
झोल मारे धरा मरणी।।
आँधी चली बैरण
फोड़ती घाव नूतन से
लहरें रुदन करती
सिंधु का क्रोध भू तन से
बादल बनाते घर
वज्र सी मार कर करणी।।
छाई खुशी बिखरे
कष्ट तांडव करे सिर पर
दिखते दिवस तारे
मृत्यु सौ नित रहे हैं मर
सूरज ग्रहण अवसर
कालिमा चर रही चरणी।।
यह शेर सी गर्जन
पाश अजगर निगलता सा
अटका शिखा में है
प्राण मुख में निकलता सा
भूकम्प के झटके
काँपती क्षिति लगे डरणी।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुंदर नवगीत। नमन गुरूदेव।
ReplyDeleteबहुत सुदंर नवगीत 11/14 इस मापनी पर और भी बढ़ियाँ लय सजने लगा है बेहद खूबसूरत गीत बहुत सारी बधाइयां आपको गुरुदेव🙏🙏🙏👌👌👌👌🌹🌹🌹
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत
ReplyDeleteसुंदर गीत
ReplyDeleteसादर नमन गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना ....हमेशा की तरह अनोखी शैली 👌