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Wednesday, April 14, 2021

नवगीत : चिट्ठी लिखी कितनी : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
चिट्ठी लिखी कितनी
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~11/14 

चिट्ठी लिखी कितनी
मगर आई नहीं पाती
फिर लेखनी पूछे
विरह की आग झुलसाती

ये काव्य पुतली से
लिखाती लेखनी आँखें
फिर शब्द चिह्नों से
उकेरे मोर सी पाँखें 
मसि तिलमिलाई सी
पुरानी रीत झुठलाती।।

अद्भुत भृकुटि अनुपम
कहानी गीत में लिखती
दबती कहीं पर तो
कहीं उठ भाव में दिखती
ये प्रीत के नखरे
सुना है आज इठलाती।।

इक टीस दुख देती
लिखा ये भाव चिट्ठी में
सौगंध चुप्पी की
दिलाती ताव चिट्ठी में
संकल्प नूतन से
लिए प्राचीन धुन गाती।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

4 comments:

  1. वो भी क्या वक़्त सुहाना था
    अपनों की चिट्ठी आती थी
    वर्णों में स्मृतियाँ बसती थी
    स्याही भी नयन रुलाती थी

    बहुत ही हृदयस्पर्शी चिट्ठी...यादों को ताजा कर गई 👌

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  2. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय👌👌👌

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  3. बहुत ही सुदंर पोस्टमैन से बाते और चिट्टियो का जमाना था बहुत प्यारी रचना आपकी सारे वो पल याद आ गये सादर नमन आपको🙏🙏🙏🙏🙏

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  4. अद्भुत भृकुटि अनुपम
    कहानी गीत में लिखती
    दबती कहीं पर तो
    कहीं उठ भाव में दिखती
    ये प्रीत के नखरे
    सुना है आज इठलाती
    वाह!!!
    लाजवाब नवगीत हमेशा की तरह।

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