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Wednesday, April 14, 2021

नवगीत : जीवन-यज्ञ : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
जीवन-यज्ञ 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 16/14 

आहुति से बढ़ती ये ज्वाला 
हवन कुण्ड विस्तार करे
तिल-तिल जलता सा यूँ जीवन
स्वप्न तिलों की हार करे।।

आज यथार्थी मिथ्या सम्बल
चूर चूर हो बिखर गया
हर्ष कुटुम्ब छलावा करके
यहाँ खड़ा था किधर गया
घटा निरन्तर बरस पड़ी फिर
सर्व नाश तैयार करे।।

नींव जड़ित सब पावन समिधा 
यज्ञ मध्य में निपट गई
धुँआ-धुँआ नेत्रों के आगे
अश्रु धार तब लिपट गई
घृत गुणकारी काम न आया
सप्त मातृका मार करे।।

लौहबान सा कर्म क्षेत्र फिर
क्षण भर में ही पिघल गया
अपनेपन की खुशबू स्वाहा
सब अपनो को निगल गया
प्रेम समर्पण सी सामग्री 
पूर्णाहुति को पार करे।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

5 comments:

  1. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    जीवन की आहुति को हवन कुंड के माध्यम से बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है 👌
    यथार्थ का बोध कराता अद्भुत वर्णन👌👌👌

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  2. बहुत सुन्दर नवगीत।
    चैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. सादर नमन गुरुदेव बहुत ही शानदार नवगीत आज के परिवेश पर 👌👌👌👌🙏🙏🙏ढे़रो बधाइयां

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  4. आज यथार्थी मिथ्या सम्बल
    चूर चूर हो बिखर गया
    हर्ष कुटुम्ब छलावा करके
    यहाँ खड़ा था किधर गया
    घटा निरन्तर बरस पड़ी फिर
    सर्व नाश तैयार करे।।
    बहुत ही उत्कृष्ट सृजन....
    वाह!!!!

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  5. बहुत सुंदर।लेखनी गुरुवर की अजब निराली।
    छन्द ताल लय सबसे प्यारी।

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