नवगीत
झाँकता दर्पण
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~ 11/14
उर झाँकता दर्पण
करे शृंगार नित अनुपम
छवि मुस्कुराहट सी
निखरता रूप है उत्तम।।
वह ओष्ठ रतनारे
चमक आभा खटक देती
उपमा जड़ित सुंदर
परी को भी पटक देती
यह आदि आकर्षण
हृदय विद्युत झटक देती
जब बात पर खुलते
झलक वो इक लटक देती
भेती घटक हिय को
दिखे ब्रह्मा बने सत्तम।।
ये श्यामला वर्णी
लगा बुकनी सँवर जाती
दृग कोर काजल से
बने ये और भी घाती
सौंदर्य की मूरत
भिजाती दृष्टि की पाती
इक नेह सा बुनती
चला चरखा सुनी गाती
आती सुरों की धुन
सफल करती दिखे उद्यम।।
चम्पा सुगंधित सी
कली सुंदर खिली प्यारी
कर स्पर्श से चुनती
महकती देख फुलवारी
जलती तड़पती सी
वहाँ पर पुष्प की नारी
सौगंध सी चाहें
दिखाई दे न दोबारी
सारी मचलती सी
बचाती आज निज प्रीतम।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सादर नमन 🙏
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत सृजन 👌👌👌
सभी बिम्ब एक से बढ़कर एक 👌
आकर्षक वर्णन 💐💐💐💐
उर झाँकता दर्पण
ReplyDeleteकरे शृंगार नित अनुपम
छवि मुस्कुराहट सी
निखरता रूप है उत्तम।।वाहहहह बेहद खूबसूरत सृजन आदरणीय 👌👌👌👌👌
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteसादर नमन
ReplyDeleteउपमा जड़ित सुंदर परी को भी..अति सुंदर सृजन आदरणीय
अति सराहनीय लेखनी।जय गुरुवर।
ReplyDeleteसुंदर, अनुपम, अभिनव,
ReplyDeleteअलंकारों की अप्रतिम छटा।
अलंकार को अलंकार पहना दिया ।
वाह!!
अल्कांरो से सुसज्जित बहुत सुदंर नवगीत👌👌👌🙏🙏🙏
ReplyDeleteश्रृंगार का श्रृंगार
ReplyDeleteनये अलंकार सा लेखन
सुनाई देता अद़भुत
एक झंकार सा तन मन ॥
सादर नमन ...उत्कृष्ट सृजन
ड़ा यथार्थ
बहुत सुन्दर नवगीत।
ReplyDeleteचैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ।