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Tuesday, April 13, 2021

नवगीत : झाँकता दर्पण : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
झाँकता दर्पण
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी~ 11/14

उर झाँकता दर्पण
करे शृंगार नित अनुपम
छवि मुस्कुराहट सी
निखरता रूप है उत्तम।।

वह ओष्ठ रतनारे
चमक आभा खटक देती
उपमा जड़ित सुंदर
परी को भी पटक देती
यह आदि आकर्षण
हृदय विद्युत झटक देती
जब बात पर खुलते
झलक वो इक लटक देती
भेती घटक हिय को
दिखे ब्रह्मा बने सत्तम।।

ये श्यामला वर्णी
लगा बुकनी सँवर जाती
दृग कोर काजल से
बने ये और भी घाती
सौंदर्य की मूरत
भिजाती दृष्टि की पाती
इक नेह सा बुनती
चला चरखा सुनी गाती
आती सुरों की धुन
सफल करती दिखे उद्यम।।

चम्पा सुगंधित सी
कली सुंदर खिली प्यारी
कर स्पर्श से चुनती
महकती देख फुलवारी
जलती तड़पती सी
वहाँ पर पुष्प की नारी
सौगंध सी चाहें 
दिखाई दे न दोबारी
सारी मचलती सी
बचाती आज निज प्रीतम।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

9 comments:

  1. सादर नमन 🙏
    बहुत ही खूबसूरत सृजन 👌👌👌
    सभी बिम्ब एक से बढ़कर एक 👌
    आकर्षक वर्णन 💐💐💐💐

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  2. उर झाँकता दर्पण
    करे शृंगार नित अनुपम
    छवि मुस्कुराहट सी
    निखरता रूप है उत्तम।।वाहहहह बेहद खूबसूरत सृजन आदरणीय 👌👌👌👌👌

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  3. सादर नमन
    उपमा जड़ित सुंदर परी को भी..अति सुंदर सृजन आदरणीय

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  4. अति सराहनीय लेखनी।जय गुरुवर।

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  5. सुंदर, अनुपम, अभिनव,
    अलंकारों की अप्रतिम छटा।
    अलंकार को अलंकार पहना दिया ।
    वाह!!

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  6. अल्कांरो से सुसज्जित बहुत सुदंर नवगीत👌👌👌🙏🙏🙏

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  7. श्रृंगार का श्रृंगार
    नये अलंकार सा लेखन
    सुनाई देता अद़भुत
    एक झंकार सा तन मन ॥

    सादर नमन ...उत्कृष्ट सृजन
    ड़ा यथार्थ

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  8. बहुत सुन्दर नवगीत।
    चैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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