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Saturday, April 3, 2021

गीत : सुंदरता की कमी नही : संजय कौशिक 'विज्ञात'


गीत 
सुंदरता की कमी नही
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी~16/14

मोर पंख के आंचल में भी
सुंदरता की कमी नहीं
कविता तो बातों में कहदूँ 
बातें ही तो जमी नहीं।।

कितने बिम्ब उधड़ जाते हैं
मेरे पृष्ठों पर कोरे
और कल्पना धक्के खाती
गाँव गली के नित गोरे
तितली जैसी कलियाँ बहकी
पकड़ रहे जब कुछ छोरे
पनघट पर भी खुशियाँ चहकी 
गीतों के सुर झकझोरे 
कोयल की मिश्री सी बोली
सुनता हूँ नित थमी नहीं।।

तैयार खड़े अलंकार भी 
गल की कंठी सी जड़ दे
एक कबूतर करे गुटरगूँ 
सोच रहा खुशियाँ छड़ दे 
स्वर्णकार से कहता फिरता
एक अँगूठी तू घड़ दे 
बाग आम के सिमट चुके हैं 
छाया केवल यो बड़ दे
बूढ़े ठेरे खुश होते हैं 
आँखों में फिर नमी नहीं।।

महल बना चंदन उपवन में
सर्पों का देश निकाला
काव्य रचूं मैं वहाँ बैठ कर 
जहाँ दिखे तक्षक काला
वेद व्यास का सर्प बताये
रचे ग्रंथ करके चाला
समय मिले तो महाकाव्य सा
रच दूँ इब उसकी ढाला 
पाकिस्तान जुए में ले लूँ
खेल खिलाऊँ रमी नहीं।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

4 comments:

  1. वाह पाकिस्तान जुए में ले लूँ
    अति उत्तम बिम्ब

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  2. कितने बिम्ब उधड़ जाते हैं
    मेरे पृष्ठों पर कोरे
    और कल्पना धक्के खाती
    गाँव गली के नित गोरे
    वाह बेहतरीन 👌👌👌👌

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  3. बिम्बों से सजी हुई नवगीत । प्रणाम गुरूदेव

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  4. बहुत ही खूबसूरती से बिम्बों मे सजाकर क्या बात है गुरुदेव शानदार सादर नमन है आपको आपकी लेखनी को🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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