नवगीत
परदेस की चिट्ठी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 11/14
परदेस की चिट्ठी
हमारे गाँव में आई
भूली नहीं अब तक
वही संदेश वो लाई।।
अक्षर नहीं टूटे
न मसि भी है कहीं टपकी
सुंदर पता दिखता
लगाई खोल पर थपकी
लपकी जहाँ चिट्ठी
वहाँ देखें खड़े नाई।।
संबंध नदिया जो
निभाती सिंधु से अपना
लहरें मचलती सी
यही तो देखती सपना
झूठी पड़ी बातें
उन्हीं की चोट पछताई।।
तारे बहुत रोये
वहीं उपवन करें क्रंदन
खुशबू कहाँ खोई
वहाँ टोहे खड़े चंदन
वंदन लिखा उसने
हुई कुछ मौन घबराई।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही खूबसूरत नवगीत 👌
ReplyDeleteइसके बिम्ब और शब्द जितने अच्छे हैं उतनी ही प्यारी इसकी धुन भी है। शानदार सृजन की ढेर सारी बधाई 💐💐💐💐
बहुत ही शानदार गुरूदेव ।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार गुरुदेव🙏🙏🙏
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