नवगीत
सैर अम्बर की
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 14/14
सैर अम्बर की करें क्या
चल चलें अब घूम आएँ
बादलों की नद बनाकर
काठ की नौका तिराएँ।।
इंद्र धनुषी खींच चप्पू
वायु की लहरें दिखाकर
दस दिशा पर यंत्र सूचक
शब्द को अपने जमाकर
भावना की नाव बहती
पार इसको अब लगाएँ।।
गुदगुदी करना मुझे तुम
मैं हँसाउंगा तुम्हे फिर
पाश आलिंगन बँधे से
मैं मनाऊँगा उन्हें फिर
नेह की यह चाल अनुपम
इस जगत को आ दिखाएँ।।
अम्बरों के पार जाकर
एक व्याख्या नेक देंगे
प्रीत की उत्तम अलौकिक
इस जगत को टेक देंगे
केश सहलाऊँ जहाँ मैं
खोल देना तुम शिखाएँ।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
खूबसूरत नवगीत 👌
ReplyDeleteतुकांत अत्यंत आकर्षक... भाव अद्भुत 💐💐💐
बहुत खूब 🌹👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही शानदार कुछ नया सा आनंद आ गया बहुत खूब,🙏🙏🙏🙏🙏👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों और संवेदनाओं से परिपूर्ण नवगीत ।प्रणाम गुरूदेव ।
ReplyDeleteबादलों की नद बनाकर, काठ की नौका तिरायें......अनूठे बिंबों से सजा खूबसूरत नवगीत👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏
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