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Friday, March 19, 2021

नवगीत : पृथक : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
पृथक
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी ~ 16/14 

देख बिलखता खण्डित चूल्हा 
आग पेट की फिर लहकी
शोर मचाती भीतें रोई
कुछ मुंडेर लगी बहकी।।

पृथकवाद का दृश्य खटकता
कुणबा प्यारा तोड़ गया
नीम करेले से भी मीठी
कुछ हिय में स्मृति छोड़ गया 
जब संयुक्त रहे सब मुद्दे
कारण क्या सब फोड़ गया 
आँखों की नदिया भी सूखी
सूख गाँव का झोड़ गया
निजता की पहचान अनूठी
उग्र शिखा की लौ दहकी।।

छाज छालनी वाचन गुंजित
आज क्षमा चाहे घाटी
कच्चे घर के छप्पर बाँटे
और बँटी दिखती टाटी
गिनकर खाट भरी की रस्सी 
न्यूनाधिक देखी काटी
चाव पृथक होने का टेढ़ा 
लगा आंट पर फिर आटी 
बंधन मन पर नूतनता का
धड़कन पर आहट चहकी।।

इक गंडासे के दो फरसे
उन दोनों को खोल दिया
कष्ट प्रताड़ित पृथकवाद से
कण-कण ने दुख बोल दिया
प्रीत विनय के उन गहनों पर
स्वार्थ द्रव्य का घोल दिया 
कड़वी बोली तीर चलाकर
कोमल अन्तस् छोल दिया
अन्य मिले जब कंठ लगे तो
चोट खटकती सी महकी।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

7 comments:

  1. बहुत ही सुंदर नवगीत गुरुदेव👌
    मुहावरों का सटीक प्रयोग और बिम्बों की नव्यता आपके लेखन को अन्य रचनाओं से अलग और बेहद आकर्षक बना देती है। नमन आपकी लेखनी को 🙏

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  2. अद्भुत बिम्बों से सजी बहुत सुंदर भावप्रधान नवगीत।

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  3. बहुत सुंदर नवगीत गुरु जी।नमन लेखनी को।

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  4. अति सुंदर रचना , वाह बहुत बहुत बढ़िया

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-03-2021) को    "फागुन की सौगात"    (चर्चा अंक- 4012)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  6. सुंदर शैली ,नई व्यंजनाएं बात में मुहावरे दार तेजी ।
    धारदार नवगीत।
    सुंदर अभिराम।

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  7. नव बिंबों को दर्शाता लाजवाब गीत, हार्दिक बधाई

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