नवगीत
नूण रोटी का दुख
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~14/12
रोटियों की सिसकियों का
आह क्रंदन देश में
अग्नि चूल्हे की तड़पती
भूख के परिवेश में।।
इस उदर की पीर फफके
शूल पीड़ित वेग से
आँत चीखे शुष्क पिसती
जो निभाती नेग से
आह भरती कट रही हैं
नग्न सी इक तेग से
गूँजते स्वर फूटते है
रिक्त जो उस देग से
ये प्रताड़ित भूख शोषित
नत पड़ी परमेश में।।
रेत से अन्तस् दहकते
पूछ किसको चाव है
और भूभल से जले अब
टीकड़ों पर घाव है
गाँजती खिचड़ी यहाँ पर
दिख रहा कुछ ताव है
रिक्त जल घट भी पिपासित
देखता जब नाव है
पेट पूरा पर अधूरा
व्यंजना तोयेश में।।
प्याज चटनी दूर से ही
बस्तियों को ताकती
मिर्च तीखापन भुलाकर
आँसुओं को माँजती
नूण रोटी से कहे दुख
क्यों नहीं घर झाँकती
लूट कर खुशियाँ घरों की
रोटियाँ अब भागती
दास्यता की बाँध बेड़ी
झोंकती है क्लेश में।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
अद्भुत,अप्रतिम, अद्वितीय नवगीत👌👌👌👏👏👏💐💐💐हर बिंब स्वयं में एक कहानी कहता सा प्रतीत होता है।बेहद शानदार सृजन..नव्यता से भरपूर🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ReplyDeleteअति सुंदर बिम्ब से सजा नवगीत
ReplyDeleteसादर नमन गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत हॄदय स्पर्शी मार्मिक नवगीत जिसका हर बिम्ब नवीनता लिए हुए देश के बिगड़े हुए हालात और गरीबों की पीड़ा का सटीक चित्रण करता हुआ मन और मस्तिष्क को सोचने पर विवश करता हुआ प्रतीत होता है। आपकी प्रत्येक रचना हमारे लिए एक उदाहरण है जो लेखन की प्रेरणा देती है ....सादर धन्यवाद 🙏
मार्मिक चित्रण नवगीत के माध्यम । गहरी संवेदनाओं से परिपूर्ण । प्रणाम गुरुदेव ।
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक लेखनी गुरुवर सादर नमन ।सुप्रभात
ReplyDeleteआ0 उत्कृष्ट और मार्मिक नवगीत
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट और साथ मे मार्मिकता लिये हुये शानदार बिम्बों के साथ बेहद सुदंर🙏🙏🙏🙏👌👌👌
ReplyDeleteसार्थक सृजन।
ReplyDeleteबेहतरीन भावों के लिए है यह रचना।
ReplyDeleteशानदार बिंबों से सुसज्जित नवगीत
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