नवगीत
ज्ञान का गुरुकुल
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 14/14
सूर्य शशि शिक्षित करें नित
दीप सबके हिय जलाकर
हर रहे अज्ञान का तम
ज्ञान का गुरुकुल बनाकर।।
सीख नूतन कर प्रसारित
नव्य सा आभास देते
संतुलित रखते धरा को
प्राणियों को वास देते
मेघ जल का शोध बनते
वाष्प से लें जल उड़ाकर।।
बन खड़ी है श्रेष्ठ शिक्षक
ये प्रकृति दिन रात देकर
शीलता गुण तरु प्रदाता
पत्थरों की घात लेकर
वायु देती ज्ञान सुख-दुख
शीत लू दोनों चलाकर।।
केंद्र शिक्षा देख कर ये
पढ़ रहे हैं कौन अक्षर
गूँजते बहते चलें ये
तो कहीं पर मौन अक्षर
और लहरों ने पढ़ाया
पढ़ रहे हैं नित सुधाकर।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सादर नमन गुरुदेव 🙏🙏🙏
ReplyDeleteसुंदर रचना 👌👌👌 नूतन बिम्ब और कथ्य समाहित किये हुए। सारगर्भित सृजन की हार्दिक बधाई 💐💐💐
अप्रतिम भाव और शब्दों का गुन्थन अद़भुत रूप श्रृंगार अद़भुत है शब्दावली अद़भुत गीत प्रभाव
ReplyDeleteड़ा यथार्थ
बहुत सुन्दर नवगीत।
ReplyDeleteबेहतरीन नवगीत आदरणीय 👌👌👌👌
ReplyDeleteशानदार सृजन
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