नवगीत
यूँ समर्पण झील का
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~14/12
सौर मण्डल भी पिपासित
यूँ समर्पण झील का
चांद आँचल से निहारे
देख दर्पण झील का।।
सूर्य की उन रश्मियों ने
सांध्य का वंदन किया
राज्य अपना वार के फिर
चंद्रमा को दे दिया
साँझ का शृंगार अद्भुत
प्रेम अर्पण झील का।।
भेंट में तारे सजाकर
थाल पूरा भर दिया
दिख रहे नक्षत्र मोहक
यूँ निशा को घर दिया
बिम्ब बन प्रतिबिम्ब महके
भाग्य सर्पण झील का।।
खोल अम्बर नेत्र देखे
दृश्य अनुपम वश्य का
शुक्लपक्षी मंत्रमुग्धी
चित्र वो परिदृश्य का
साधता है लक्ष्य अपने
दोष तर्पण झील का।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही सुंदर नवगीत 👌
ReplyDeleteआकर्षक बिम्ब...जितना खूबसूरत शिर्षक उतना ही मार्मिक सृजन। प्रारंभ से अंत तक बिम्बों का प्रभाव मस्तिष्क को विचार करने पर प्रेरित करता हुआ। गुरुदेव नमन आपकी लेखनी को 🙏🙏🙏
वाह!लाजवाब, शानदार,अद्भुत सृजन हृदय स्पर्शी नवगीत।🙇🙇💐💐🙏🙏
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन , बहुत सुंदर श्रृंगार रचना , मानवीकरण की अनुपम छटा।
ReplyDeleteअप्रतिम।
क्या कहने बहुत ही सुन्दर आपकी रचना नवगीत👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteअति सुंदर बिम्ब से सजा मनमोहक नवगीत
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति, नमन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व भावपूर्ण रचना
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