नवगीत
इंद्रधनुषी सा अबीरी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~ 14/14
इक महोत्सव रूप धरके
पर्व होली यूँ दमकता
इंद्रधनुषी सा अबीरी
रंग फागुन का चमकता।।
हिय पुलक पुलकित पलों का
आज तन्द्रित योग खिलता
ढंग आकर्षण वहाँ पर
प्राप्य रूपक नित्य झिलता
फिर भ्रमर का गान गुंजित
बाग उपवन में गमकता।।
पंख यौवन के खुले जब
खोल कर वे बाँह उड़ते
मस्त गलियों में लहरते
दृश्य मोहक तीव्र मुड़ते
मन मचलता तितलियों का
नेह लाये जो रमकता।।
प्रेम का त्यौहार अनुपम
हर हृदय को मान देता
पर्व अपना हर कलुषता
छालनी बन छान देता
एक इतराहट दिखाकर
माह फाल्गुन ये छमकता।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
अनुपम नवगीत
ReplyDeleteअनुपम नवगीत
ReplyDeleteलाजवाब सृजन 👌 आ.
ReplyDeleteशानदार बिम्बों से सजा खूबसूरत होली नवगीत 👌
ReplyDeleteअपने अलग अंदाज में नव्यता लिए लेखनी पुनः चली है 💐💐💐
वाह!शानदार सृजन👌👌✍️✍️💐💐😊😊🙏🙏
ReplyDeleteवाह! बहुत सरस सुंदर फाल्गुनी गीत ।
ReplyDeleteअंलकारों का "अभिनव" प्रयोग होली को सार्थ करता सुंदर नवगीत।
बहुत ही सुन्दर आदरणीय
ReplyDeleteसाहित्य की काव्य विधा के अलंकार विधान की टूटती साँसों में नव जीवन का संचार करता सुंदर, अभिनव काव्य चित्र आदरणीय संजय जी। हार्दिक शुभकामनाएं लयबद्ध भावपूर्ण होली गीत के लिए। 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteहिय पुलक पुलकित पलों का
ReplyDeleteआज तन्द्रित योग खिलता
ढंग आकर्षण वहाँ पर
प्राप्य रूपक नित्य झिलता
फिर भ्रमर का गान गुंजित
बाग उपवन में गमकता।।
👌👌👌👌👌🙏🙏
अति सुंदर
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