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Friday, June 11, 2021

इस रचना के रस और अलंकार पहचानिये ... संजय कौशिक 'विज्ञात'


इस रचना के रस और अलंकार पहचानिये ... 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

कुण्डलियाँ

महकी रजनी नाचती, चन्द्र नाचते साथ।
यमुना के तट हर्ष से, मिला हाथ में हाथ।।
मिला हाथ में हाथ, तिमिर कुछ राग बजाता।
नेह प्रमाणित आज, विरह सा जलता गाता।।
कह कौशिक कविराय, रागिनी आती दहकी।
आलिंगन अनुबंध, किया जब रजनी महकी।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'


उल्लाला छंद
लीला रचते काले सदा, नित ज्योत्स्ना के साथ में।
यमुना तट पर लिपटे लता, फिर तरुवर के हाथ में।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

8 comments:

  1. शृंगार रस से सराबोर इस रचना में मानवीयकरण,उपमा,रूपक,आदि अलंकार मुझे देखने को मिलें।सादर नमन🌷🌷🙏🙏

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  2. बहुत ही शानदार सृजन आदरणीय गुरु देव 🙏💐

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  3. नमन गुरुदेव 🙏
    अलंकारों का खूबसूरत प्रयोग 👌
    शानदार उदाहरण 💐💐💐💐

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  4. विशुद्ध संयोग श्रृंगार की रचना।
    अनुपम भाव,
    समास उक्ति अलंकार:-
    रजनी दुर्गा ,या एक पौधा, चन्द्र हुए मुरली धर , रजनी राधा को कह सकते हैं, क्योंकि तट यमुना का है और हाथ में हाथ है तो राधा कृष्ण हाथ में हाथ लिए नृत्य कर रहे हैं, या फिर महकता पौधा या पेड़ जैसे हवा बह रही है और पौधा लहरा रहा है ,और यमुना में प्रतिछाया चाँद और पादप की दोनों लग रहा है हाथ में हाथ लेकर नाच रहें हैं ।
    मानवीकरण अलंकार भी👆👇
    तिमिर एक पेड़ को भी कहते हैं ,
    हवा में पेड़ों से एक ध्वनि निकलती है वो हुई रागिनी, मानवीकरण।

    रागिनी लक्ष्मी ,या विदग्धता स्त्री,दहकी, रूपक
    विरह सा उपमा, अंतिम पंक्ति अनुप्रास।
    अद्भुत है शायद मेरी सोच से बहुत ऊपर।🙏

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  5. अद्भुत सृजन आदरणीय।

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  6. बहुत खूबसूरत सृजन

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