मुक्तहरा सवैया
शिल्प विधान
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।
मापनी ~~
121 121 121 12, 1 121 121 121 121
उदाहरण- 1
कहाँ मकरंद बता मधु है, भँवरा यह पूछ रहा सब आज।
कली सुन शोर तभी खिलती, सब देख रहा यह सभ्य समाज।
पधार रहे अब कौन यहाँ, बगिया महके किसके कह काज।
तभी कवि देख कहे कविता, उमड़े बन प्रेम कली रस राज॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण - 2
अखंड जले जब ज्योति कहीं, तब लोग कहें जय हो भगवान।
प्रभाव जगे वह धाम दिखे, बस तीर्थ लगे तब वो गुणवान।
पुराण प्रमाण वृतांत कहें, हरि नाम करे भव पार निदान।
विशेष प्रकार विधान यही, सच भाव सधें सच के अनुमान।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण - 3
निषंग लिए वह कौन खड़ा, जब तीर करें बस तीन पुकार।
लगे रस वीर बहा कर के, अब तीव्र सधें कुछ श्रेष्ठ प्रहार।
विराट बड़ा लघु रूप बना, हिय श्याम लिए तब नेक विचार।
कहे खटवांग समस्त वहाँ, यह युद्ध समाप्त दिखे इस बार।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सुंदर सरस काव्य रस धारा।
ReplyDeleteजानकारी के साथ उपयोगी पोस्ट।
सादर नमन गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteशिल्प विधान की उत्तम जानकारी 👌
उदाहरण एक से बढ़कर एक 👏👏👏
ज्ञानवर्धक पोस्ट ,उत्कृष्ट सृजन आदरणीय🙏🙏🙏
ReplyDeleteआ. गुरुदेव जी
ReplyDeleteअति उत्कृष्ट जानकारी प्रदान किये है।