गंगोदक सवैया
शिल्प विधान
संजय कौशिक 'विज्ञात'
गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'।
मापनी ~~
212 212 212 212, 212 212 212 212
उदाहरण -1
यूँ सुरों ने बजाई जहाँ बाँसुरी, साँझ ने गीत गाये सधी ताल में।
चाँदनी ने कहा चातकी से सुनो, झांझरी सी बजाई अभी हाल में।
कूक जो बाग में गूंजती सी दिखे, शांति सी दे रही आज वो चाल में।
हर्ष आनंद की जो निशानी लगे, बाँटती नेह देखी भरे थाल में।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण - 2
मेघ से बात ये पूछती है धरा, ताप लेती रहूँ क्यों भला बोल दो।
आग फूँके सदा गात मेरा जहाँ, बूंद दे के इसे शांति का झोल दो।
वेदना के मिटें आज लावे सभी, कष्ट के घाव को प्रेम से घोल दो।
ताप ठण्डे करो कार्य मेरा यही, बंध सारे जलों के अभी खोल दो।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण - 3
देखके वो भिखारी खड़ा आज है, और वो पात्र भिक्षा न ही खोलता।
आज निश्चेष्ट देखा उसे द्वार पे, जो मरा सा पड़ा है न ही डोलता।
आँख आँसू भरी देह घावों लिये, कृष्ण का नाम बोले लगे तोलता।
द्वारिका धीश है मित्र मेरा कहे, नाम पूछा सुदामा यही बोलता।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ बहुत ही सुंदर उदाहरण 👌 धन्यवाद गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteआपकी हर पोस्ट ज्ञान में वृद्धि करती है।
बहुत ही मनमोहक सृजन ।
ReplyDeleteसम्पूर्ण जानकारी के साथ।
अति उत्तम!!
उत्कृष्ट सृजन आदरणीय, ज्ञानवर्धक 👌👌👌🙏🙏
ReplyDeleteउत्तम जानकारी आ. गुरुदेव जी
ReplyDeleteअति उत्तम जानकारी
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