रस परिभाषा तथा उदाहरण
संजय कौशिक 'विज्ञात'
रस के प्रकारों की यदि बात की जाए तो मुख्य रूप से रस नौ प्रकार के होते हैं परन्तु वात्सल्य एवं भक्ति को भी रस माना गया हैं इसलिए इनकी संख्या 11 मानी गई है-
1 शृंगार रस
2 हास्य रस
3 रौद्र रस
4 करुण रस
5 वीर रस
6 अद्भुत रस
7 वीभत्स रस
8 भयानक रस
9 शांत रस
इन्हें भी सम्मिलित किया गया है
10 वात्सल्य रस
11 भक्ति रस
शृंगार रस की परिभाषा
नायक और नायिका, प्रेमी-प्रेमिका और पति एवं पत्नी जब मिलते या बिछड़ते हैं तब उनके हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है उसे स्थाई भाव को 'रति' कहते हैं और उस भाव से उत्पन्न रस को शृंगार रस कहते हैं। यह रस मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है- संयोग शृंगार, वियोग शृंगार।
1 रति शृंगार संयोग, वियोग
उदाहरण:-
घूँघट खोल कली हँसती, दिखती यह एक परी सम है।
उज्ज्वल सा तन श्वेत दिखे, तब देख कहाँ रति से कम है।
रक्तिम रूप धरे नित ही, पर चंचल यौवन में दम है।
आज नहीं भँवरा दिखता, इस कारण आँख हुई नम है।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
संयोग शृंगार रस की परिभाषा
जहां पर नायक अथवा नायिका के मिलने का वर्णन होता है वहां पर संयोग शृंगार होता है।
उदाहरण:-
दीप जले तब एक शिखी, जलती रहती तन राख करे।
दीपक के परिरंभन में, वह नेह लुटा कर घात हरे।
बात करे हर रात वही, हिय हर्ष समर्पण याद भरे।
नृत्य सदा करती रहती, निशिवासर प्रेम उमंग परे।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
वियोग शृंगार रस की परिभाषा
जहां पर नायक अथवा नायिका के बिछड़ने का वर्णन किया जाता है वहाँ वियोग शृंगार होता है:
उदाहरण:-
आग लगी विरही मन में, तन पे गहरे फिर घाव पड़े।
वेदन के स्वर से निकले, धुन पावक से हिय पूर्ण घड़े।
ले दहके अधरों पर यूँ, वह प्रीतम नाम कृशानु कड़े।
और मिले कब शांति प्रिया, यह सोच विचार विकार अड़े।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
करुण रस रस की परिभाषा
जब किसी प्रिय व्यक्ति एवं मनचाही वस्तु के नष्ट हो जाने या उसे कोई आघात हो जाने पर हृदय में जो शोक उत्पन्न होता है, उसे ही करुण रस कहते हैं. इसमें विभाव, अनुभाव, संचारी भाव तीनों के मेल से स्थाई भाव उत्पन्न होता है जिसे 'शोक' कहते हैं
2 करुणा करुण
उदाहरण:-
पाटल कण्टक युद्ध हुआ, वह पाटल जीत गया तब से।
अश्रु प्रवाहित कण्टक के, फिर बाग उजाड़ बना जब से।
युद्ध भला कब ये कहता, सुन क्रंदन आज कहे सब से।
नेह सुवासित ये बगिया, महके सबके घर में अब से।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
शांत रसरस की परिभाषा
जब इंसान को परम ज्ञान प्राप्त हो जाता है सांसारिक मोह माया और संसार की समस्त क्रियाओं को छोड़कर वैराग्य में चला जाता है और अपनी आत्मा का परमात्मा से मिलन करने के लिए वैरागी अथवा सन्यासी हो जाता है. तू उसके हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है उस स्थाई भाव को “निवेद” या उदासीनता कहते हैं और इस कारण ही शांत रस की उत्पत्ति होती है।
3 निर्वेद शांत
उदाहरण:-
तत्व परे यह ज्ञान मिला, अब हर्ष विषाद उदास खड़े।
शांत हुई मति चित्त तभी, यह टूट विकार गए जबड़े।
ये क्षणभंगुर जीवन है, अनुशीलन वेद पढ़े रगड़े।
हर्ष विबोध कहे तब ही, मिटते सब काल बली झगड़े।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
रौद्र रस रस की परिभाषा
जब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य की निंदा या अपमान किया जाता है अथवा किसी व्यक्ति द्वारा अपने गुरु या सम्माननीय व्यक्ति का अनादर किया जाता है। तो उससे उत्पन्न स्थाई भाव को नाम की क्रोध कहते हैं और 'क्रोध' नामक स्थाई भाव के कारण उत्पन्न रस को रौद्र रस कहते हैं।
4 क्रोध रौद्र
उदाहरण:-
वृक्ष उखाड़ उजाड़ दिये, फिर बंदर शोर पुकार रहा।
और दशानन काँप गया, मुख वानर और हुँकार कहा।।
हास्य यहाँ पर कौन करे, यह सागर दे नग और बहा।
मच्छर सा वह वानर या, कर एक वहाँ छल दैत्य फहा।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
वीर रस रस की परिभाषा
वीरता से संबंधित किसी चित्र को देखकर अथवा मन में जोश भर देने वाली वीरता की कविताओं या पढ़कर को सुनकर हृदय में जो स्थाई भाव उत्पन्न होता है. उस स्थाई भाव को “उत्साह” कहते हैं. इस उत्साह के कारण उत्पन्न रस को वीर रस कहते हैं।
5 धृति/उत्साह वीर
उदाहरण:-
क्रोध जला कर भस्म करे, विकराल निशा पर रंग चढ़ा।
राख पुकार कहे उड़ती, तम का अपना अधिपत्य बढ़ा।
कालिख रौद्र बनी जबसे, यह रूप भयंकर देख मढ़ा।
वाद विवाद नहीं मिटता, तब वीर प्रकाश प्रमाद गढ़ा।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
हास्य रस रस की परिभाषा
किसी पदार्थ या किसी असाधारण व्यक्ति की असाधारण आकृति, विचित्र वेशभूषा, अनोखी बातें, और इच्छाओं से मन में जो विनोद नामक भाव उत्पन्न होता है उसे “हास” कहते हैं. यही हास नामक स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव के साथ मिलकर हास्य रस उत्पन्न करता है।
6 हँसी हास्य
उदाहरण:-
बारहवीं परिणाम मिला, वह बालक बोल पिता कहता।
औषधि का अब ज्ञान मुझे, यह अर्जित है करना रहता।
क्रोधित देख पिता उस पे, मति मूढ़ विषाणु तुझे दहता।
कारण सोच उतीर्ण हुआ, फिर द्रोह उसी पर क्यों ढहता।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
भयानक रस रस की परिभाषा
जब किसी अत्यंत भयानक एवं अनिष्टकारी लेख को पढ़कर,दृश्य को देखकर या उसके बारे में सुनकर मानव हृदय में व्याकुलता एवं डर के रूप में जो स्थाई भाव उत्पन्न होता है उसे “भय” कहते हैं. भय नामक स्थाई भाव के कारण उत्पन्न रस भयानक रस कहलाता है. इस प्रकार के रस में पसीना छूटना, दांत तले उंगली दबाना, रूह कांपना जैसे शब्द प्रयोग किए जाते हैं. आचार्य भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ अथवा ‘सम्पूर्ण इन्द्रियों का विक्षोभ’ भयानक रस है।
7 भय भयानक 1भ्रमजनित 2 काल्पनिक 3 वास्तविक
उदाहरण:-
दीप जले जब बिम्ब उठे, भयभीत करे भ्रम एक वहाँ।
काल्पिक आड़ प्रकाश करे, वह देख भला कब सत्य कहाँ।
व्याकुल सा हिय यूँ डरता, यह कौन चले अब संग यहाँ।
कम्पित सा जन हाँफ रहा, तम देख रहा जिस स्थान जहाँ।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
वीभत्स रस रस की परिभाषा
किसी घृणा पूर्ण बात को सुनकर, शर्मनाक कार्य करने वाले व्यक्ति के बारे में जानकार,किसी घृणा पूर्ण दृश्य को देखकर अथवा दूसरों की निंदा से जो घृणा या गिलानी का भाव उत्पन्न होता है. उसे “जुगुप्सा” कहते हैं। जुगुप्सा, वीभत्स रस का स्थाई भाव है. मांस का सड़ना उसमें कीड़ों का पटना एवं जानवरों द्वारा उसे नोच नोच कर खाया जाना। ऐसे शब्द भी वीभत्स रस की पुष्टि करते हैं।
8 घृणा वीभत्स 1 शुद्ध 2 क्षोभन 3 उद्वेगी
उदाहरण:-
काग उड़े फिर चील वहाँ, नभ में मँडराकर शोर करें।
और घृणा बढ़ती दिखती, यह नाक चढ़े सब देख डरें।
माँस पड़ा यह रक्त बहे, तब गंध बुरी उठ के उभरें।
क्षोभ बढ़े फिर व्याकुलता, द्रव नेत्र विदारक नित्य झरें।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
अद्भुत रस रस की परिभाषा
जब किसी आश्चर्यजनक वस्तु या व्यक्ति को देखकर मन में जो विस्मय यह आश्चर्य का भाव उत्पन्न होता है. उसे ही अद्भुत रस कहते हैं। अद्भुत रस का स्थाई भाव 'विस्मय' में होता है। बाप रे बाप, आंखें फड़ना, गदगद हो जाना जैसे शब्द अद्भुत रस की पुष्टि करते हैं।
9 आश्चर्य अद्भुत 1 दिव्य 2 आनन्दज
उदाहरण:-
नृत्य करें नटराज जहाँ, तब हर्ष अपार उमा खिलता।
दाँत तले वह ले उँगली, हिय उत्सुकतामय सा मिलता।
और अहा कह देख उन्हें, वह दृश्य मनोरम सा झिलता।
पुष्प करे फिर वर्षित वो, जब दिव्य दिखें ध्रुव भी हिलता।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
वात्सल्य रस रस की परिभाषा
जहां पर माता एवं पिता का बच्चों की प्रति प्रेम, बड़े भाइयों का छोटे भाइयों के प्रति प्रेम एवं गुरु का शिष्य प्रति प्रेम, स्नेह दर्शाया गया हो वहां पर वात्सल्य रस होता है। इस रस का स्थाई भाव 'वात्सल्य' होता है।
10 ममता वात्सल्य
उदाहरण:-
मोहित चंचल पुत्र करे, जब वत्सल प्रेम वहाँ निकले।
डाँट कहे फिर मातृ सुने, तब हास्य कहीं पर क्रोध मिले।
चुम्बन मात करे हँसती, तुतलाहट पे ममता फिसले।
मुग्ध पिता कुछ उत्सुक से, हिय हर्ष मनोहर दृश्य खिले।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
भक्ति रस रस की परिभाषा
जहां पर ईश्वर के प्रति अनुराग एवं उनकी भक्ति का वर्णन किया गया हो वहां पर भक्ति रस होता है किस रस का स्थाई भाव 'अनुराग' होता है।
11-भगवद विषयक भाव --- भक्ति
उदाहरण:-
मात पिता प्रभु तुल्य रहें, अब इष्ट यही सुन देव भले।
कार्य कठोर बनें दिखते, हिय हर्ष पदार्थ समस्त पले।
वंचित जो जन हैं रहते, वह कष्ट प्रताड़ित हाथ मले।
सेवक पुत्र सदा बनते, घर स्वर्ग वही फिर कौन छले।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
ऊपर जो उदाहरण पढ़े वो मदिरा सवैया के हैं।
मदिरा सवैया शिल्प विधान :-
मदिरा सवैया में 7 भगण (ऽ।।) + गुरु से यह छन्द बनता है, 10, 12 वर्णों पर यति होती है। इसमें वाचिक भार लेने की छूट नहीं है ।
मापनी ~~
211 211 211 2, 11 211 211 211 2
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteसभी उदाहरण एक से बढ़कर एक 👌👌👌
सादर धन्यवाद इतनी अच्छी पोस्ट बनाने के लिए 🙏
बहुत सुंदर सटीक और महत्त्वपूर्ण जानकारी
ReplyDeleteनमन गुरु देव 🙏💐
बहुत सुंदर व्याख्या गुरुदेव 🙏🌹🌹
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी गुरूदेव ।प्रणाम स्वीकार करें
ReplyDeleteइतनी महत्वपूर्ण जानकारी को इतने सुंदर व सरल ढंग से प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार सर 🙏
ReplyDeleteअत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी
ReplyDeleteनमन गुरुदेव🙇🙇🙏🙏
ReplyDeleteअभूतपूर्व,सटीक सुंदर सरलीकरण के साथ, उपयोगी पोस्ट ।
ReplyDeleteसादर आभार गुरुदेव।
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी रोचक शैली में...
ReplyDeleteलाजवाब।