मदिरा सवैया
संजय कौशिक 'विज्ञात'
शिल्प विधान
मदिरा सवैया में 7 भगण (ऽ।।) + गुरु से यह छन्द बनता है, 10, 12 वर्णों पर यति होती है।
मापनी ~~
211 211 211 2, 11 211 211 211 2
उदाहरण-1
रूप शशांक कलंक दिखा, पर शीतल तो वह नित्य दिखा।
और प्रभा बिखरी जग में, इस कारण ही यह पक्ष लिखा॥
खूब कला बढ़ती रहती, तब जीत गई फिर चंद्र शिखा।
आँचल में सिमटी उसके, तब विस्मित देख रही परिखा॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-2
बाल विवाह कलंक हटे, तब एक समाज सुधारक से।
नेक सुता अधिकार मिले, फिर क्रंदन बंद उबारक से।
आज उड़ें नित अम्बर में, जय घोष हुए उस कारक से।
मोहन राय कहें जिनको, सब उत्तम वे नृप तारक से।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-3
क्रंदन पुष्प करे छल से, जब शूल चुभे उर आकर के।
और विलाप करे बहके, अपनत्व गुलाब हटाकर के।
कष्ट सदा वह ले हिय में, हँसता रहता नित गाकर के।
बाग उजाड़ दिये बिलखे, दृग मौन प्रचण्ड बहाकर के।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण 4
वृक्ष उखाड़ उजाड़ दिये, फिर बंदर शोर पुकार रहा।
और दशानन काँप गया, मुख वानर और हुँकार कहा।।
हास्य यहाँ पर कौन करे, यह सागर दे नग और बहा।
मच्छर सा वह वानर या, कर एक वहाँ छल दैत्य फहा।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
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उदाहरण-5
मात पिता प्रभु तुल्य रहें, अब इष्ट यही सुन देव भले।
कार्य कठोर बनें दिखते, हिय हर्ष पदार्थ समस्त पले।
वंचित जो जन हैं रहते, वह कष्ट प्रताड़ित हाथ मले।
सेवक पुत्र सदा बनते, घर स्वर्ग वही फिर कौन छले।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-6
पाटल कण्टक युद्ध हुआ, वह पाटल जीत गया तब से।
अश्रु प्रवाहित कण्टक के, फिर बाग उजाड़ बना जब से।
युद्ध भला कब ये कहता, सुन क्रंदन आज कहे सब से।
नेह सुवासित ये बगिया, महके सबके घर में अब से।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-7
मुक्त हुए जन हैं भय से, यह वीर दया जब भी करते।
धर्म करें कुछ दान करें, लड़ युद्ध धरा गति पे मरते।
शौर्य दिखा बन रक्षक ये, धरणी नित निर्भयता वरते।
वीर पराक्रम सैनिक के, भुज श्रेष्ठ सदा हिय में भरते।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-8
बारहवीं परिणाम मिला, वह बालक बोल पिता कहता।
औषधि का अब ज्ञान मुझे, यह अर्जित है करना रहता।
क्रोधित देख पिता उस पे, मति मूढ़ विषाणु तुझे दहता।
कारण सोच उतीर्ण हुआ, फिर द्रोह उसी पर क्यों ढहता।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-9
घूँघट खोल कली हँसती, दिखती यह एक परी सम है।
उज्ज्वल सा तन श्वेत दिखे, तब देख कहाँ रति से कम है।
रक्तिम रूप धरे नित ही, पर चंचल यौवन में दम है।
आज नहीं भँवरा दिखता, इस कारण आँख हुई नम है।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-10
क्रोध जला कर भस्म करे, विकराल निशा पर रंग चढ़ा।
राख पुकार कहे उड़ती, तम का अपना अधिपत्य बढ़ा।
कालिख रौद्र बनी जबसे, यह रूप भयंकर देख मढ़ा।
वाद विवाद नहीं मिटता, तब वीर प्रकाश प्रमाद गढ़ा।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-11
दीप जले जब बिम्ब उठे, भयभीत करे भ्रम एक वहाँ।
काल्पिक आड़ प्रकाश करे, वह देख भला कब सत्य कहाँ।
व्याकुल सा हिय यूँ डरता, यह कौन चले अब संग यहाँ।
कम्पित सा जन हाँफ रहा, तम देख रहा जिस स्थान जहाँ।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-12
काग उड़े फिर चील वहाँ, नभ में मँडराकर शोर करें।
और घृणा बढ़ती दिखती, यह नाक चढ़े सब देख डरें।
माँस पड़ा यह रक्त बहे, तब गंध बुरी उठ के उभरें।
क्षोभ बढ़े फिर व्याकुलता, द्रव नेत्र विदारक नित्य झरें।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-13
नृत्य करें नटराज जहाँ, तब हर्ष अपार उमा खिलता।
दाँत तले वह ले उँगली, हिय उत्सुकतामय सा मिलता।
और अहा कह देख उन्हें, वह दृश्य मनोरम सा झिलता।
पुष्प करे फिर वर्षित वो, जब दिव्य दिखें ध्रुव भी हिलता।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-14
तत्व परे यह ज्ञान मिला, अब हर्ष विषाद उदास खड़े।
शांत हुई मति चित्त तभी, यह टूट विकार गए जबड़े।
ये क्षणभंगुर जीवन है, अनुशीलन वेद पढ़े रगड़े।
हर्ष विबोध कहे तब ही, मिटते सब काल बली झगड़े।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-15
मोहित चंचल पुत्र करे, जब वत्सल प्रेम वहाँ निकले।
डाँट कहे फिर मातृ सुने, तब हास्य कहीं पर क्रोध मिले।
चुम्बन मात करे हँसती, तुतलाहट पे ममता फिसले।
मुग्ध पिता कुछ उत्सुक से, हिय हर्ष मनोहर दृश्य खिले।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी और उदाहरण 👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुदेव 🙏
बहुत सुंदर सृजन आदरणीय गुरु देव 🙏💐
ReplyDeleteनमन
सुंदर जानकारी👌👌
ReplyDeleteबहुत ही उत्तम जानकारी आ.गुरुदेव जी
ReplyDeleteअति उत्तम जानकारी और उत्कृष्ट उदाहरण आ0 गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteइस पोस्ट का मोल नहीं आंका जा सकता।
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