नवगीत
नींद तड़पती
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी - 16/14
बाँस तोड़ती सी खटिया पे
नींद तड़पती जीवन की
स्वप्न लीलती सी परछाई
मार्ग सदा नव यौवन की।।
पुष्प जाल में फँस जाते जब
रोग वहाँ दे तड़पाहट
कष्ट वार के अर्पण करता
शूल सदा देते आहट
छील हिय तभी रक्त प्रवाहित
भाव अनूठे त्रस्त करें
मौन वेदना सी चीत्कारे
चीख हृदय को पस्त करें
हाथ घूमते वस्त्र पुकारें
मार पड़े जब धोबन की।।
त्रास फाँस के कंपन देता
दीप खड़ी लौ यूँ भड़के
एक नेत्र में बैठा तिनका
अश्रु बहाता सा रड़के
नाव डूबती चाह किनारा
सोच लहर ये नित बहती
सिंधु मध्य की तीव्र सुनामी
बात हृदय समझे कहती
आत्मघात की रीत निभाती
शेष कथा ये जोगन की।।
पाट घूमता काल बली का
शोर करे चक्की सुर में
घाव बिंध के घुन से रिसता
बोल खटकता सा उर में
कौन देखता उसके छाले
और वहाँ उसकी पीड़ा
शब्द खेलते अन्तस् हिय से
एक निराली ये क्रीड़ा
क्षोभ बाँटती विष की पुड़िया
हास्य विवाद अशोभन की।।
©संजय कौशिक 'विज्ञात'
जीवन के उतार चढ़ाव की धार्मिकता को बिम्ब से सुसज्जित किया इस नवगीत को । प्रणाम स्वीकार करें गुरूदेव जी ।
ReplyDeleteधार्मिकता को मार्मिकता पढ़े
Deleteबहुत ही सुन्दर नवगीत नये बिंम्ब से सुसज्जित बहुत मार्मिक शानदार बहुत सारी बधाई सादर प्रणाम🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर, अनुपम, अनुकरणीय सृजन आदरणीय गुरु जी 🙏💐 नमन
ReplyDeleteधोबन की मार अतिशय भिन्न व्यंजना हम काल की मार तक उलझे रहते हैं ,बात बात में आध्यात्मिक होता अनुपम नवगीत।
ReplyDeleteसादर।
शानदार बिंबों से सुसज्जित नवगीत
ReplyDeleteअति सुंदर गुरुवर, आपकी लेखनी धन्य है।सादर नमन।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना। गुरुदेव को बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteनूतन बिंबों से सुसज्जित ,अनुपम नवगीत आदरणीय👏👏👏सादर नमन
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...अनुकरणीय👌👌💐💐
ReplyDeleteएक ऐसी भाव पूर्ण काव्य मंजूषा जो मन को प्रफुल्लित कर देती है ।अति सुन्दर भाव रचना सर 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🥀🍀🌾🙏🌹🥀🥀🍀🍀
ReplyDeleteSunder
ReplyDeleteबहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteगुरुदेव को प्रणाम 🙏
बेहतरीन नवगीत सृजन 🙏🏻
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई व ढेरों शुभकामनाएं आ.गुरुदेव🙏🏻🙏🏻
बेहतरीन जीवन के हर पहलू को चित्रित करती सुंदर रचना
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