सुखी सवैया
शिल्प विधान
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सुखी सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु लघु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के लिखने से यह छन्द बनता है।
मापनी ~~
112 112 112 112, 112 112 112 112 11
उदाहरण-1
अपमान करें कुछ लोग जहाँ, तब देख विकार विचार किया कर।
चुप क्यों रहना हर बार वहाँ, फिर उत्तर भी सब श्रेष्ठ दिया कर॥
जब आहत वे करते तुझको, उनसे बदला हर एक लिया कर।
परित्याग बने मन से उनका, मनभावन जीवन शेष जिया कर॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-2
विधि का यह श्रेष्ठ विधान दिखे, यह देश दिखे अपना नित पावन।
षट हैं ऋतुएं बसती जिसमें, यह हिन्द महान लगे मन भावन।
जब प्रीत बढ़े वह भी ऋतु है, कहते हम हैं जिसको सब सावन।
शुभ हैं गणना कहते वह भी, अपनी सुन वे सब एक इकावन।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-3
अभिमान किया जब रावण ने, तम देख हुआ यह अस्त दिवाकर।
कुल नाश हुआ कब शेष बचा, सब दम्भ चढ़ा यह भेंट सुधाकर।
सब स्त्री पर लालच त्याग चलो, मद काम विकार तजो हरि ध्याकर।
प्रभु राम रटो गुणगान करो, सुरती हिय में यह नित्य लगाकर।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
उदाहरण-4
यह ज्ञान सनातन सीख यहाँ, नित हिन्द पुकार कहे सुन आकर।
यह मान पयोधि तजे कब यूँ, सुन पूछ स्वयं अब तो कुछ चाकर।
फिर शक्ति बढ़े जब पुंज दिखे, सत ओम सुधाकर से गुण पाकर।
चल सिंह समान कभी अबतो, यह छोड़ सियार पना चमकाकर।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही सुंदर जानकारी और उदाहरण गुरुदेव 🙏
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर जानकारी
आ. गुरुदेव जी