copyright

Thursday, June 17, 2021

सुख सवैया : शिल्प विधान : संजय कौशिक 'विज्ञात'

सुख सवैया
शिल्प विधान 
संजय कौशिक 'विज्ञात'


सुख सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु गुरु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के अन्तिम वर्ण को दीर्घ करने से यह छन्द बनता है।
मापनी ~~ 
112 112 112 112, 112 112 112 112 12



 उदाहरण-1

जब पुष्प खिलें हिय नाच रहे, यह मोर सभी तब गीत सुनाइये।
इस कोयल के स्वर मंद दिखें, मधु ताल वहाँ कुछ आप बनाइये। 
स्वर पंचम लेकर कंठ उठे, लय कोमल सी फिर तान बजाइये।
यह बाग रहे फिर मूक खड़ा, धुन पावन सी मन भावन गाइये।

संजय कौशिक 'विज्ञात'




उदाहरण-2 

वह साँकल टूट गई पल में, झटसे झड़ते दिखते अवरुद्ध ये।
जब कृष्ण लिया वसुदेव उठा, चलते बढ़ते करते फिर युद्ध ये।
फिर स्नान करा यमुना चलती, तब देव हुए कह पावन शुद्ध ये।
तिथि अष्टम का क्षण पावन सा, अवतार लिया चमके दिन बुद्ध ये।

संजय कौशिक 'विज्ञात'



उदाहरण-3

फिर रावण का झड़ मान गया, हिलता डुलता पग अंगद का नहीं।
वह शूर सभा फिर लज्जित सी, कब दृश्य रहा इस वानर सा कहीं।
जय राम कहा फिर ठोक दिया, यह पैर समक्ष प्रजा दिखता यहीं।
पर मानव वानर कौन भला, हरि दूत बना जमके खिलता वहीं।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर जानकारी आ.गुरुदेव जी
    प्रणाम

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर जानकारी और उदाहरण गुरुदेव 🙏

    ReplyDelete