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Tuesday, June 8, 2021

नवगीत : एक दहकी पीड़ : संजय कौशिक 'विज्ञात'




नवगीत 
एक दहकी पीड़ 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी~~ 14/14

एक दहकी पीड़ अन्तस्
मौन की धारा बहाई
रोग की नदिया उफनकर
रोगियों की बाढ़ लाई।।

एक ज्वाला सी धधकती
प्राण स्वाहा कर लपेटे
माँ बहन भाई पिता अब
चढ़ गए हैं मृत्यु पेटे
देख फेटे बिन गए सब 
रो रही वो आज दाई।।

पांत टूटी खाट उलटी
अब घरों में नित बिलखती
देहरी जब चीख मारे
चूळ की छाती धड़कती
यातना ये सांकळों की
हूक हिय में दब न पाई।।

देख कुल दीपक बुझाती
ये नदी कितनी मचलती
लाज मारे चील को भी
जो शवों से आज टलती
और दुर्गन्धित धरा पर
मात्र शव की दृश्य काई।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

15 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत हृदयस्पर्शी मार्मिक नवगीत गुरुदेव....नि:शब्द 😢

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  2. बहुत ही मार्मिक चित्रण गुरुजी द्वारा , दिल को दर्द कष्ट से भरपूर यक सच्चाई , नमन गुरुदेव 🙏🙏

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन
    नमन गुरु देव 🙏

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  4. बेहतरीन रचना आदरणीय 🙏

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  5. बहुत ही मार्मिक चित्रण आदरणीय

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  6. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय

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  7. बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय गुरुदेव बहुत सुंदर👌👌👌🙏🙏🙏🙏

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  8. बहुत ही मार्मिक सृजन आदरणीय।नि:शब्द🙇🙇🙏🙏

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  9. दारुण दृश्य उत्पन्न करता मर्मातंक सृजन।
    आँचलिक शब्दों से नवगीत में दर्द और उभरकर आया है।
    असाधारण, अद्भुत।

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  10. बेहद मार्मिक सृजन👌👌👌👌👌

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  11. बहुत सुंदर गुरुवर।सादर नमन

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  12. बहुत ही मार्मिक... नमन आपको गुरु जी...🙏

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  13. बेहतरीन रचना श्रीमन 🙏

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