नवगीत
एक दहकी पीड़
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~~ 14/14
एक दहकी पीड़ अन्तस्
मौन की धारा बहाई
रोग की नदिया उफनकर
रोगियों की बाढ़ लाई।।
एक ज्वाला सी धधकती
प्राण स्वाहा कर लपेटे
माँ बहन भाई पिता अब
चढ़ गए हैं मृत्यु पेटे
देख फेटे बिन गए सब
रो रही वो आज दाई।।
पांत टूटी खाट उलटी
अब घरों में नित बिलखती
देहरी जब चीख मारे
चूळ की छाती धड़कती
यातना ये सांकळों की
हूक हिय में दब न पाई।।
देख कुल दीपक बुझाती
ये नदी कितनी मचलती
लाज मारे चील को भी
जो शवों से आज टलती
और दुर्गन्धित धरा पर
मात्र शव की दृश्य काई।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही खूबसूरत हृदयस्पर्शी मार्मिक नवगीत गुरुदेव....नि:शब्द 😢
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक चित्रण गुरुजी द्वारा , दिल को दर्द कष्ट से भरपूर यक सच्चाई , नमन गुरुदेव 🙏🙏
ReplyDeleteHriday sparshi geet
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteनमन गुरु देव 🙏
बेहतरीन रचना आदरणीय 🙏
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक चित्रण आदरणीय
ReplyDeleteबेहद हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय गुरुदेव बहुत सुंदर👌👌👌🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक सृजन आदरणीय।नि:शब्द🙇🙇🙏🙏
ReplyDeleteदारुण दृश्य उत्पन्न करता मर्मातंक सृजन।
ReplyDeleteआँचलिक शब्दों से नवगीत में दर्द और उभरकर आया है।
असाधारण, अद्भुत।
बेहद मार्मिक सृजन👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर गुरुवर।सादर नमन
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक... नमन आपको गुरु जी...🙏
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना श्रीमन 🙏
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