घनाक्षरी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
1
विज्ञात घनाक्षरी
शिल्प : विज्ञात घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,8 पर यति होती है। इसके प्रत्येक चरणान्त में 3 गुरु आते हैं। इसमें विज्ञात छंद की मापनी 211 212 22 प्रत्येक यति के साथ निभाई जाती है जिसमें (पद सनुप्रास) प्रत्येक यति पर अन्त्यानुप्रास की भांति अनुप्रास इसे पद सनुप्रास कहते हैं। इसमें कुल 32 वर्ण होते हैं।
उदाहरण :-
विज्ञात घनाक्षरी
देख यहाँ वहाँ सारी, और कहाँ कहाँ न्यारी,
बात लगे सभी प्यारी, कोयल ये बुलाती है।
राग बजे सुरीली वो, कण्ठ सजे छबीली वो,
ताल लिये सजीली वो, ज्ञान यही ढुलाती है।
लेख कहे विधाता सा, प्रेम बढ़े रिझाता सा,
मोहन ये सुनाता सा, सीख वही सुनाती है।
सिद्ध यही प्रभावी है, और कहे छलावी है,
शांत हुई भुलावी है, घाव सभी दिखाती है।
उदाहरण 2
विज्ञात घनाक्षरी
भूल गया सभी बातें, खेल रही वही घातें,
जाग चुका कई रातें, नींद मुझे नहीं आई।
रोग कहे वही प्यारा, छंद नहीं बना न्यारा,
टूट गया हिये हारा, पीर मिले वही गाई।।
ज्ञान गया कहीं खोया, खिन्न हुआ तभी रोया,
कष्ट यही सदा ढोया, एक खुशी नहीं पाई।
कूप बना खड़ा देखा, और वहाँ पड़ी रेखा,
नेत्र पढ़ें कहाँ लेखा, देख नहीं फटी काई।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
2
मनहरण घनाक्षरी
शिल्प: मनहरण घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,7 वर्णों पर या 16,15 पर यति होती है इसके अंत में एक गुरु अनिवार्य होता है (अर्थात इससे पूर्व एक लघु और उससे पूर्व एक गुरु के माध्यम से ही 1 गुरु स्पष्ट किया जा सकता है इसमें कुल वर्णों की संख्या 31 होती है।
उदाहरण
मनहरण घनाक्षरी
अष्ट वर्ण तीन बार, सप्त वर्ण लिखो फिर,
इकतीस अक्षर ये, तोल लो घनाक्षरी।
लीखिये द्विवर्ण चार, यति आये तीन बार,
द्विवर्ण, त्रिवर्ण दो ले, घोल लो घनाक्षरी॥
*मनहरण* निराला, जम के ये पढ़ा जाये,
सवैया का परिवार, खोल लो घनाक्षरी।
अंत एक गुरु जँचे, देख पाँच मात्रा पूर्व,
चार पद चार तुक, बोल लो घनाक्षरी॥
3
रूप घनाक्षरी
शिल्प: रूप घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,8 वर्णों पर यति होती है इसके अंत में गाल (21) वर्ण अनिवार्य होता है इसमें कुल 32 वर्ण होते हैं।
उदाहरण
रूप घनाक्षरी
कोयल की कूक प्यारी, लगती है मनोहारी,
पंचम में स्वर गूँजे, चहुँ दिश सब राग।
फाल्गुनी के रंग उड़े, और टूटे मन जुड़े,
कलरव ऐसा छाया, महके हैं देख बाग।
यौवन उमंग भरा, और प्रेम ढंग भरा,
समझ न आया कुछ, रंग का ये देखो दाग।
टूट जाये नींद तभी, जागे देखे लोग सभी,
कृष्ण की ये सखियाँ हैं, इनका ही ये है फाग।
4
जलहरण घनाक्षरी
शिल्प: जलहरण घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,8 वर्णों पर यति होती है, इसमें 16,16 वर्णों पर भी यति आती है, इसके चरणान्त में दो लघु अनिवार्य होते हैं, इसमें कुल 32 वर्ण होते हैं।
उदाहरण
जलहरण घनाक्षरी
कोरोना के लिया चित, राज काज देखो नित,
भारत ये करे अब, भारती की जय-जय।
ताला बंदी देख फिर, सबके ही मौन सिर,
देश सारा एक कह, आरती की जय-जय।।
उठती उमंग मन, और ले हिलोर तन,
लड़ रहे युद्ध सब, मारती की जय-जय।
तन की उधारी सुन, बज रही श्वास धुन,
प्राण महा प्राण यह, धारती की जय-जय।।
5
जनहरण घनाक्षरी
शिल्प: जनहरण घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,7 पर यति होती है। 30 वर्ण लघु और 1 वर्ण गुरु मात्रा भार सहित कुल 31 वर्ण होते हैं। चरणान्त में एक वर्ण गुरु (2) अंत में होता है
उदाहरण
जनहरण घनाक्षरी
नयन टपक कह, मन धक धक रह,
विषय अचल सब, पल-पल चलते।
खटक चटक गढ़, प्रणय चलन पढ़,
वरण कथन कह, यह कब टलते।।
पर अब यह वह, रह-रह सब सह,
अन बन घर-घर, सब कह खलते।
गरज बरस तर, छल मन भर कर,
सच कह वह रच, घट-घट छलते।।
6
डमरू घनाक्षरी
शिल्प: डमरू घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,8 पर यति होती है, प्रत्येक वर्ण बिना किसी लघु, गुरु मात्रा के लघु (1) होते है। इसमें कुल 32 वर्ण होते हैं।
उदाहरण
डमरू घनाक्षरी
पनघट चल कर, अब चल घट भर,
जन कह सब यह, मत बन नटखट।
नटखट यह पथ, चल चढ़ अब रथ,
जल भर डट कर, मत कर खटपट।।
खटपट कर हल, मत रख वह बल,
बढ़ कर मन फट, बढ़ रह चटपट।
चटपट सह बच, सत मय लय रच,
अब बढ़ कर चल, यह कह पनघट।।
7
विजया घनाक्षरी
शिल्प: विजया घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,8 वर्णों पर यति होती है। इसके चरणान्त में लघु गुरु (12) या नगण (111) वर्ण होते हैं (पद अनुप्रास ) होते हैं। इसमें कुल 32 वर्ण होते हैं
उदाहरण
विजया घनाक्षरी
नेत्र विचलित हुए, बहे तो द्रवित हुए
सोये जागे नित हुए, स्वप्न सब सँवारते।
कुंठित सा रोग दिखे, दृश्य यही सर्व चखे,
कितनी ही बात रखे, ये आंखों में निहारते।।
भूखी शुष्क पिपासित, आँखें बोलती विदित,
और यही सुवासित, इशारों में उबारते।
कौशिक ये रोग वहीं, दिखता ही नहीं कहीं,
छुप-छुप देखो यहीं, भाव भर पुकारते।।
8
कृपाण घनाक्षरी
शिल्प : कृपाण घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,8 पर यति होती है। इसके प्रत्येक चरणान्त में गाल अर्थात गुरु लघु आते हैं। (पद सनुप्रास) प्रत्येक यति पर अन्त्यानुप्रास की भांति अनुप्रास इसे पद सनुप्रास कहते हैं। इसमें कुल 32 वर्ण होते हैं।
उदाहरण
कृपाण घनाक्षरी
शूरवीर स्वाभिमान, शंख नाद का ले ज्ञान,
उनका ही अभिमान, यह जय हिंदुस्तान।
शौर्य शक्ति का विधान, सारे विश्व को है भान,
नहीं कोई अनजान, तिरंगे का जय गान।।
काल करे अभिमान, उसका भी खींचे ध्यान
शौर्य के हैं प्रतिमान, महाकाल से जवान।
माटी के है ये किसान, वायु से हैं गुणवान,
साफ जल जैसी शान, सीमा के ये भगवान।।
9
हरिहरण घनाक्षरी
शिल्प: हरिहरण घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 8,8,8,8 वर्णों पर यति होती है। इसके प्रत्येक चरणान्त में दो लघु पद सनुप्रास होते हैं इसमें वर्णों की संख्या 32 होती है
उदाहरण
हरिहरण घनाक्षरी
कविता का सार सुन, भाव व्यवहार सुन,
हिय की पुकार सुन, करे जो प्रहार सुन।
करूणा का वार सुन, और कहूँ प्यार सुन,
कष्ट का ये हार सुन, शौर्य पुष्प धार सुन।।
नवधा बहार सुन, छंद अलंकार सुन,
ज्ञान का भण्डार सुन, तुक का आधार सुन।
श्रोता ले उचार सुन, मंच की हुँकार सुन,
आचार विचार सुन, कवि का आभार सुन।।
10
सूर घनाक्षरी
शिल्प: सूर घनाक्षरी में 8,8,8,8 वर्णों पर यति होती है, इसके चरणान्त में लघु (1) या गुरु (2) कोई भी वर्ण आ सकता है। इसमें वर्ण संख्या 30 होती है
उदाहरण
सूर घनाक्षरी
मजदूरों का है काल, भूख प्यास का है जाल,
देख सारे हैं बेहाल, फँस रो रहे हैं।
एक मई का दिवस, आज भी रहे तरस,
अब और कर बस, आँसूं यूँ बहे हैं।।
कष्ट में हैं प्राण आज, बिन अन्न जल काज,
कोई सुन ले आवाज, इतना कहे हैं।
रोता दिखे परिवार, मौन हुई सरकार,
इनका है क्या आधार, कष्ट जो सहे हैं।।
11
देवहरण घनाक्षरी
शिल्प: देवहरण घनाक्षरी में 8,8,8,9 वर्णों पर यति होती है। इसके प्रत्येक चरणान्त में 3 लघु (111) नगण वर्ण अनिवार्य होता है। इसमें कुल 33 वर्ण होते हैं
उदाहरण
देवहरण घनाक्षरी
यहाँ वहाँ जग सारा, ढूँढ- ढूँढ मन हारा,
श्याम धणी एक प्यारा, मत द्वारे-द्वारे भटक।
चाहिये न कुछ और, भाव ये कहें विभोर,
तीन लोक मचा शोर, लीले की है प्यारी लटक।।
जीवन ये नाम करूँ, सखा फिर क्यों मैं डरूँ,
खुशी-खुशी झोली भरू, लगी है मुझे ये खटक।
कौशिक सुनेंगे टेर, करेंगे जरा न देर,
कटेंगे ये सब फेर, सारी ये मिटेंगी अटक।।
12
कलाधर छंद / कालधर घनाक्षरी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
शिल्प: आज वार्णिक दण्डक छंद घनाक्षरी में विशुद्ध घनाक्षरी देखते हैं। गुरु लघु की पंद्रह आवृति और अंत में एक गुरु।अर्थात 2 1×15 तत्पश्चात एक गुरु।इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण। उम्मीद है यह साधारण शिल्प समझ में आगया होगा। मापनी और गण व्यवस्था से भी पुनः समझते हैं ....
मापनी
21212121, 21212121, 21212121, 2121212
गण :
रगण जगण रगण जगण रगण जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु वर्ण
उदाहरण :
कलाधर घनाक्षरी
हिन्द देश है महान, विश्व में बड़ा प्रचार,
योग, वेद, सांख्य, ज्ञान, ध्यान आन जान लो।
मंत्र- तंत्र के प्रभाव, यंत्र के बहाव देख,
घूमता दिमाग देख, वेग जोर मान लो॥
पंच तत्त्व के विवेक, चीर फाड़ काट नित्य
बूटियाँ कमाल दूध, नीर आज छान लो।
हस्त-रेख, सूर्य-केतु, मेष-मीन, भूमि चाल,
शून्य खोज से असंख्य, ढूँढते विधान लो॥
संजय कौशिक 'विज्ञात'
इस लेख के माध्यम से घनाक्षरी के विषय में स्पष्ट रूप से पता चलता है । यह जानकारी घनाक्षरी सीखने वाले के लिए बहुत उपयोगी होने वाली है
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चयन।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया घनाक्षरियाँ।
विस्तार से दी गई जानकारी के लिए आभार आदरणीय, बहुत खूब जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर 👌🏻👌🏻👌🏻 शानदार एक से बढ़कर एक घनाक्षरी 👏👏👏👏 नमन आपकी लेखनी को 🙏🙏🙏
ReplyDeleteघनाक्षरी पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय🙏🙏
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