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Wednesday, April 1, 2020

नवगीत : मधुमासी अभिनंदन : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
मधुमासी अभिनंदन 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी ~~ 16/14 

पतझड़ से अन्तस् कानन में,
मधुमासी सा अभिनंदन।
दृष्टि पटल से पलक उठी जब, 
गिरती सी करती वंदन।

1
सूखी खुशियाँ खिली दिखी जब, 
महकी कलियाँ मुस्काई।
देख हँसी तो अन्तस् मन में, 
सरसों सी थी तरुणाई।
मस्त तरंग प्रकम्पन कहते,
हृदय स्पर्श कर मदमाई।
लटक रही थी ब्याल जहाँ पर, 
महक रहे वो सब चन्दन ...

2
यौवन धार गुरुत्वाकर्षण, 
आकर्षक सा अवलंबन।
कंटीली सी पीर समय की,
मिटती सब बिना विलंबन।
पवमान लिए उपहार खड़ा, 
और जड़ा अधरों चुम्बन। 
लाखों झोंके करते देखे,
बहुत कलह सा फिर क्रंदन।

3
कलकल गूंजे बहते झरने, 
रक्त धमनियाँ दौड़ रही। 
सांय सांय की आवाजें थी, 
समझ नासिका छोड़ रही।
नेत्र विचारक बन कर बैठे,
आस उन्हें कुछ जोड़ रही।
प्राणायाम हृदय तक उतरा,
बाहर काबू से स्पंदन ... 

संजय कौशिक 'विज्ञात'

13 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2020) को "नेह का आह्वान फिर-फिर!" (चर्चा अंक 3660) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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  2. बहुत सुन्दर गीत।
    श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. वाह ...बहुत सुंदर 👌👌👌
    लाजवाब शब्दचयन ,बिम्ब और कथन ...बहुत ही प्रेरणादायक सृजन । बहुत बहुत बधाई आदरणीय 💐💐💐💐

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  5. वाह वाह बेहतरीन बिंबों से सुसज्जित नवगीत

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  6. भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति की हार्दिक बधाई

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  7. अद्भुत शब्द चयन ,लाजवाब बिम्ब ,मनमोहक नवगीत 👌👌👌👌👌

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  8. बहुत ही सुन्दर

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  9. बहुत ही सुन्दर

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  10. बहुत ही सुन्दर शब्दों का चयन और नवगीत का सफर सुन्दर समायोजन करता कहने

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