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Wednesday, April 8, 2020

नवगीत : बरसा जब विश्वास : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
बरसा जब विश्वास 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी 13/11

उमड़ घुमड़ छाता रहा, 
हृदय प्रीत मधुमास।
पर्व हर्ष का फिर मना,
बरसा जब विश्वास।

1
बौर आम्र पर अब लदे
कोयल पंचम गान
बैठ पपीहे सुन रहे 
प्रेम मगन कुछ तान
यौवन चहुँ दिश छा गया
लगी सभी को आस।

2
दर्पण गोरी देखती 
नख शख रही निहार 
दृष्टि चित्त खुश कर रही 
भृकुटि मंत्र उच्चार 
सोलह से शृंगार कर 
पिया मिलन के खास 

3
इत्र छिड़क महकी दिखे 
जैसे बगिया आज
भँवरे सब पगला गये
थे पागल के काज
होश सभी बिसरा रहे 
हुआ खड़ा ही नास 

4
दोष पूछ मधुमास से
शायद कहदे भेद
गौरव पावन पूण्य सा
उच्चारित कह वेद 
दग्ध विरह करती दिखे
प्रेम दीप दे चास

संजय कौशिक 'विज्ञात'

5 comments:

  1. सादर नमन 🙏🙏🙏
    बहुत ही सुंदर नवगीत जिसे पढ़ कर गुनगुनाने का मन करे ....लाजवाब सृजन 💐💐💐💐

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  2. बहुत सुंदर आदरणीय आपकी यह रचना मधुमास

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  3. बेहतरीन भावों से सजी अप्रतिम रचना

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  4. वाह !बहुत ही सुंदर सृजन

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