नवगीत
बरसा जब विश्वास
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी 13/11
उमड़ घुमड़ छाता रहा,
हृदय प्रीत मधुमास।
पर्व हर्ष का फिर मना,
बरसा जब विश्वास।
1
बौर आम्र पर अब लदे
कोयल पंचम गान
बैठ पपीहे सुन रहे
प्रेम मगन कुछ तान
यौवन चहुँ दिश छा गया
लगी सभी को आस।
2
दर्पण गोरी देखती
नख शख रही निहार
दृष्टि चित्त खुश कर रही
भृकुटि मंत्र उच्चार
सोलह से शृंगार कर
पिया मिलन के खास
3
इत्र छिड़क महकी दिखे
जैसे बगिया आज
भँवरे सब पगला गये
थे पागल के काज
होश सभी बिसरा रहे
हुआ खड़ा ही नास
4
दोष पूछ मधुमास से
शायद कहदे भेद
गौरव पावन पूण्य सा
उच्चारित कह वेद
दग्ध विरह करती दिखे
प्रेम दीप दे चास
संजय कौशिक 'विज्ञात'
सादर नमन 🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर नवगीत जिसे पढ़ कर गुनगुनाने का मन करे ....लाजवाब सृजन 💐💐💐💐
बहुत सुंदर आदरणीय आपकी यह रचना मधुमास
ReplyDeleteबेहतरीन भावों से सजी अप्रतिम रचना
ReplyDeleteवाह !बहुत ही सुंदर सृजन
ReplyDeleteशानदार सृजन
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