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Wednesday, November 24, 2021

नवगीत : पनघटों के गीत प्यारे : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत
पनघटों के गीत प्यारे
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ 14/14
पाखियों की चहचहाहट
पनघटों के गीत प्यारे
उस रहट की तान गूँजे
तितलियों के राग न्यारे।।

कामिनी की दोघड़ों ने
धार जीवन की भरी जब
ढोल चुपके से मिला यूँ
माट ले सिर पर धरी जब
धुन बजा कर राग उत्तम
तू पुनः आना पुकारे।।

पाँव पनिहारिन धरे यूँ
देह लेकर फिर लरजती
दो घड़ों का भार तन पर 
चाल उसकी और जमती
भोर लाली वारती सी
यूँ ठहरती सी निहारे।।

हर्ष घड़ियाँ प्रिय लगी यूँ
और आकर्षण निखरता
कर चला नभ और वंदन
जब उजाला सा बिखरता
कुछ भ्रमर जब झूमते से
तब चले गा बाग द्वारे।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

15 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत नवगीत 👌
    नमन आपकी लेखनी को गुरुदेव 🙏

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  2. र्ष घड़ियाँ प्रिय लगी यूँ
    और आकर्षण निखरता
    वाह बहुत ही सुन्दर सृजन आ. गुरुदेव जी

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  3. बहुत ही सुन्दर अति उत्तम बहुत। शानदार गुरुदेव आपकी लेखनी को नमन है🙏🙏🙏🙏👌👌👌

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  4. हर्ष घड़ियाँ प्रिय लगी यूँ
    और आकर्षण निखरता
    वाह बहुत ही सुन्दर सृजन आ. गुरुदेव

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  5. सुंदर नवगीत
    नमन गुरु देव 🙏💐

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  6. बहुत सुंदर नवगीत , गुरुदेव को नमन 🙏🏼🌺🌹🌹🌷

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  7. मन को विभोर करते प्राकृतिक दृश्य और आह्लाद से भरता चित्रण।
    अभिनव नव गीत ।
    सुंदर सरस।

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  8. वाह अति मनोहारी गीत
    पनघट की याद लौट आयी

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  9. पनघट से भरी गगरिया लेकर लौटती परिवारिक का दृश्य सजीव हो उठा नेत्रों के समक्ष.....बहुत शानदार नवगीत👏👏👏👏👏👏

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  10. मधुर मनभावन गीत👌👌सुंदर शिल्प

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  11. ग्रामीण जीवन का सुंदर सरस चित्रण ।

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  12. बेहद खूबसूरत नवगीत आदरणीय 👌👌🙏

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