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Sunday, September 19, 2021

नवगीत : चट्टानों के गीत अधूरे : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
चट्टानों के गीत अधूरे 
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी- 16/10


चट्टानों के गीत अधूरे 
नदिया गाती है
बहती मंद समीर तभी ये
मचली जाती है।।

लहरें ले आलाप तभी ये
सरगम चहकी सी
झंकृत वीणा तार बजी ज्यूँ 
पीकर बहकी सी
दहकी सी फिर शीतल सी वो
यूँ बतियाती है।।

पाषाणी रँगरेज कहे जो 
धारण रंग करे 
श्याम हरित फिर अम्बर जैसा
तन को आप वरे
बिम्ब खरे ये कुंदन से कुछ
हिय अपनाती है।।

शृंगारित कर देह जड़ित फिर
अनुपम सी बनकर
श्रेष्ठ विशाल गठित नव यौवन
चलती सी तनकर
छनकर चंद्रप्रभा चांदी सी
नित्य बिछाती है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

10 comments:

  1. बहुत ही शानदार नवगीत 👌
    शब्दचयन, भाव, शिल्प सब एक से बढ़कर एक। मानवीकरण से कथन और भी प्रभावी हो गया 🙏 नमन

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  2. चट्टानों के अधूरे गीत नदियाँ गाती है ,👌👌👌👌बहुत सुन्दर एक से बढ़कर एक नमन आपको 🙏🙏🙏🙏

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  3. अति सुंदर नव गीत । बधाई हो।

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  4. बहुत सुंदर नवगीत 👌नमन गुरुदेव 🙏

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  5. अनुपम रचना गुरुवर की जय हो

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  6. बहुत प्यारा नवगीत!

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  7. सुंदर! माधुर्य से भरा नवगीत।
    शब्दों की अनुपम छटा जादूगरी बिखेर रही है।
    अप्रतिम।


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  8. बहुत सुन्दर नवगीत प्रस्तुति

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  9. बहुत ही सुन्दर शानदार 👌👌 नवगीत
    नमन गुरु देव 🙏💐

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