copyright

Tuesday, September 14, 2021

नवगीत : घर पीछे बड़बेर : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत
घर पीछे बड़बेर
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी - 11/15

घर पीछे बड़बेर
सुना बेरों से बतियाती
सिंचित करता कौन
व्यथा भीतों से कह जाती।।

बिन सिंचन का कष्ट
विटप तप-तपता सा निगले
तरु बेरी तन कोढ़ 
सिसकता शूलों को उगले
शाखाओं पर खेद
सदा पत्तों में छिपवाती।।

शूल सुनाते गीत
सुने तब टहनी भी लरजे
क्रंदन रोके अश्रु
तभी उन बेरों को बरजे
द्रव देकर माधुर्य
विदाई सूखी करवाती।।

ले अन्तस् में गाँठ
चला जब बेर लुढ़कता सा
वज्र प्रहारी चोट
सहे जड़ पात टसकता सा
सांकेतिक सा बोल
यही गुठली है समझाती।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

14 comments:

  1. खूबसूरत बिम्बों से सजा सुंदर नवगीत 👌
    बिम्ब, कथन, शिल्प सब नया 👌
    हार्दिक बधाई अनुपम सृजन की गुरुदेव 💐💐💐

    ReplyDelete
  2. बहुत ही गजब नये खूबसूरत बिम्बो से सुसज्जित लय पर भी शानदार अनुपम सृजन🙏🙏🙏🙏👌👌👌👌

    ReplyDelete
  3. गुठली है समझाती....👌👌👌👌😄😄😄

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर गुरुवर

    ReplyDelete
  5. वाह वाह अनुपम गीत बधाइयाँ

    ReplyDelete
  6. बेहद ख़ूबसरत नवगीत 👌👌👌

    ReplyDelete
  7. करुण रस का अद्भुत चित्रण।
    अभिनव प्रयोग अभिनव व्यंजनाएं।

    ReplyDelete
  8. ले अंतस में गाँठ चला जब बेर लुढकता सा👌🏼👌🏼👌🏼वाहह आदरणीय..नूतन बिंबोंसे बेहतरीन नवगीत👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼

    ReplyDelete
  9. लाजवाब हृदयस्पर्शी,शानदार नवगीत💐💐🙏🙏

    ReplyDelete
  10. नूतन बिंब ओढ़े हृदयस्पर्शी नवगीत👌👌💐💐🙏🙏

    ReplyDelete
  11. करुण रस से सराबोर अंतस व्यथा को दर्शता नवगीत

    ReplyDelete
  12. खूबसूरत नवगीत आपकी कलम की देन हम सभी को धन्यवाद

    ReplyDelete
  13. बेहद खूबसूरत नवगीत सृजन!

    ReplyDelete
  14. ज्ञान भंडारी!
    बेहद खूबसूरत नवगीत सृजन!

    ReplyDelete