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Saturday, December 18, 2021

नवगीत : सुन हॄदय स्पंदन गमकता : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
सुन हॄदय स्पंदन गमकता
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी 14/14

क्षण बहक कर थक चुका सा
स्मृति गहन दे और पहरा
इक प्रतीक्षा नित निभाए
आस पर विश्वास गहरा।।

भाग्य का हिस्सा तिमिरमय
रात्रि से लड़ ऊब बैठा
श्रेष्ठ योद्धा शौर्य थामें 
धड़कनों पर खूब बैठा 
वाद्य वीणा सुर थिरकता
फिर अखण्डित रूप ठहरा।।

मांग ले सिंदूर भरती
नेत्र ने काजल सजाई 
रक्तिमा अनुपम अधर की 
कुमुदिनी देखे लजाई
सुन हृदय स्पंदन गमकता
स्वांग करता कर्ण बहरा।।

कोकिला की तान हँसती
रातरानी मुस्कुराई 
चाँदनी छिटकी धरा पर
उर्मियों ने दी बधाई
आ गई स्वर्णिम रजत सी
यूँ मिलन की रात्रि लहरा।।

#संजयकौशिक'विज्ञात'

10 comments:

  1. अति उत्तम बिम्ब से सजा नवगीत

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  2. बहुत बहुत बहुत सुंदर शानदार नमन गुरुदेव

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  3. उत्तम भावपूर्ण सृजन।
    मानवीयकरण की अनुपम छटा हर पंक्ति में ।
    अद्भुत।

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  4. सुंदर सृजन 👌👌
    नमन गुरु देव 🙏💐

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  5. नमन गुरुदेव 🙏
    खूबसूरत बिम्बों से सजी अलंकृत मनभावन रचना 👌

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  6. मानवीयकरण की छटा लिये बहुत शानदार नवगीत👏👏👏👏

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  7. बहुत सुंदर सृजन गुरुदेव की । नमन गुरुदेव को ।

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  8. अति उत्तम बिंब प्रस्तुति गहन पीड़ा, आत्मबल पर अवलंबित संदेश प्रदान रचना आदरणीय।

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  9. भाग्य का हिस्सा तिमिरमय रात्रि से डर ऊब बैठा , अति सुंदर । नमन गुरुजी

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