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Friday, December 10, 2021

नवगीत : अनकहे वो शब्द बोले : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
अनकहे वो शब्द बोले
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी- मुखड़ा/पूरक पंक्ति 14/14
            अन्तरा 14/12

स्वप्न पर दृग काव्य लिखते
अनकहे वे शब्द बोले
व्यंजना का हिय तिरस्कृत
घाव से लेकर फफोले।।

इस पलक की लेखनी ने 
रस व्यथा का कह दिया
आह फिर स्याही भरे जब
सह करुणता का लिया
भीड़ भारी सी उमड़ती
पुतलियाँ उसको टटोले।।

काव्य अनुपम आँख गढ़ती
कोर विस्मित रह गई
भाव भर झरना बहा जब
आँख अपनी कह गई
फिर अलंकरणों बिना ही
रो पड़े भौं के खटोले।।

शब्द नूतन जड़ दिए यूँ
नेत्र ने कविता रची 
स्वप्न टूटा तिलमिलाए 
शब्द बिन कविता पची
पंक्तियाँ दृग की सुलझती
छंद के बहते चमोले।।

शब्दार्थ 
फफोले - त्वचा के जलने पर पड़नेवाला छाला जैसे—फफोला पड़ना
टटोले - स्पर्श करके ढूँढने की स्थिति 
गढ़ती - निर्मित करती
खटोले - खाट का छोटा रूप 
चमोले - हास्यास्पद बातें

#संजयकौशिक'विज्ञात'

6 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति नमन गुरुदेव 🙏🌹

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  2. बहुत ही शानदार नवगीत क्या कहने गाने में भी👌👌👌👌👌

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  3. अद्भुत सृजन आ.नमन है आपकी लेखनी को।

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  4. वाह अद्भुत 👌👌👌👌

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  5. अद्वितीय ,अभिनव, असाधारण।

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