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Wednesday, July 21, 2021

नवगीत : मीत का आभास : संजय कौशिक 'विज्ञात'




नवगीत 
मीत का आभास 
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी ~ 14/14

बूंद तन पे जब चिपकती
मीत का आभास देती
वो किरण सी खिलखिलाई
एक बाती चास देती।।

वेग से गिरती हुई सी 
बूंद अपनी बात कहती
आग प्रीतम के हृदय की
स्पर्श से यूँ और दहती
आँख बहती मौन साधे
पी मिलन की आस देती।।

बूंद के ये पुष्प अनुपम 
मार्ग में सावन बिखेरे
मग्न जल से पथ हुए यूँ
बिम्ब मोती के उकेरे 
गीत टेरे दामिनी ने 
रागिनी विश्वास देती।।

कामिनी का ये विरह भी
हर्ष का आनंद पाए
जब हवा ठिठुरन उड़ेले
उड़ दुपट्टा फेर जाए
कर रही प्रिय सी शरारत
नव्यता सोत्प्रास देती।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

9 comments:

  1. आंँख बहती मौन साधे
    पी मिलन की आस देती

    वाह वाह बहुत खूब

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  2. सादर नमन गुरुदेव 🙏
    विरह और श्रृंगार रस का शानदार उदाहरण 👌
    मानवीकरण और सुंदर उपमाओं से सुसज्जित अलंकृत रचना 🙏

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  3. श्रृंगार रस वो करुण रस से सृजित अनूठी रचना👌👌🙏🙏💐💐

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  4. क्या बात है । बहुत सुन्दर नवगीत । बिंब बोल रहे हैं लेखनी के माध्यम से । प्रणाम स्वीकार करें ।

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  5. बहुत ही शानदार नवगीत बिंम्बों से सुसज्जित गुरुदेव आको नमन है इतनी सुन्दर रचना ढ़ेरों शुभकामनाएं प्रणाम🙏🙏🙏🙏

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  6. सुंदर सृजन अनंत बधाइयां आदरणीय गुरुदेव 🙏💐 नमन 💐🙏

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  7. अनूठी व सुंदर रचना

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  8. बहुत सुंदर रचना

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