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Monday, July 12, 2021

नवगीत : हिय व्यथित चित्कारता : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
हिय व्यथित चित्कारता
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~ स्थाई / पूरक पंक्ति ~ 12
अन्तरा 16/16

हिय व्यथित चित्कारता।।

आहत क्रंदन शोर मचाता
चीत्कारों को कौन सुनेगा
भावों की ये नदिया बहती
वर्ण पिघलते दोष लगेगा
और सावन मारता।।

हृदय विलापी राग सुनाकर
कंठ हुए अवरुद्ध पुकारें 
नृत्य करें विकलांग इशारे
गायन के सब स्वर झनकारें
कष्ट भी दुत्कारता।।

जकड़न तोख हथकड़ी झड़के
सम्मोहन की टूटी बेड़ी
पाश बिलखता मोह संकुचित
और विदारक चीखें छेड़ी
व्यंजना को धारता।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

9 comments:

  1. सादर नमन 🙏
    बहुत सुंदर लेखन 💐💐💐💐

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  2. वाह अद्भुत 👌👌👌👌 हार्दिक बधाई आदरणीय 🙏

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  3. वाह अद्भुत लेखनी बहुत बधाई नमन आपको🙏🙏🙏

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  4. शानदार
    आपकी लेखनी को नमन

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  5. बहुत सुंदर सृजन आदरणीय गुरु देव 🙏💐 नमन 💐🙏

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  6. सुंदर काव्य सृजन 🙏🙏

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  7. हृदयस्पर्शी लेखन👌👌💐💐🙏🙏

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  8. अद्भुत हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय👏👏👏

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  9. बहुत सुंदर रचना

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