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Wednesday, May 26, 2021

नवगीत : रूठे जब प्रतिबिम्ब : संजय कौशिक 'विज्ञात'



नवगीत 
रूठे जब प्रतिबिम्ब
संजय कौशिक 'विज्ञात'

मापनी ~16/16

रूठे जब प्रतिबिंब स्वयं के
कष्ट अलग से दर्पण झाँके
साक्खे करते दुःख सुबकते
मुँह को करके आड़े बाँके।।

अम्बर भी फट कर हँसता है
अम्ल वहाँ बरसा कर थोड़ा
आज ठहाके देता रिश्ता
बंध रुदन ने ऐसे फोड़ा
घोड़ा कोड़ी के भाव बिका 
अरबों में व्यापारी आँके।।

घाव सिसकते से घबराये
लांछन लेकर अपने सिर पर
फूट पड़े फिर बहते आँसू 
घोर विदारक क्रंदन लेकर
तनकर योग कुयोग बने हैं
हर्षित से क्षण जिसने फाँके।।

दुर्घटना यूँ और हुई तब
जब अधरों पर लटके ताले
रक्तिम गात फटा अंदर तक
देख सुआँ भी बदले पाले
छाले सारे ढाँप लिए यूँ
आज लगाके तन पर टाँके।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

13 comments:

  1. हृदयस्पर्शी नवगीत आदरणीय..अप्रतिम🙏🙏🙏
    अंबर का हँसना , घाव का सिसकना..पीड़ा का चरम
    नूतन बिंबों केसाथ, सादर अभिवादन🙏🙏🙏

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  2. नूतन बिम्ब के साथ सुंदर सृजन

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  3. बहुत ही खूबसूरत हृदय स्पर्श करती रचना सुदंर नवगीत गुरुदेव🙏🙏🙏🙏🙏👌👌👌👌

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  4. बेहतरीन नवगीत आदरणीय 🙏🙏

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  5. बहुत ही मार्मिक हृदय स्पर्शी नवगीत 👌
    आकर्षक बिम्ब ...हार्दिक बधाई गुरुदेव 💐💐💐

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  6. बहुत ही मार्मिक नवगीत गुरूदेव ।

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  7. बहुत ही मर्म भरा हुआ नवगीत हृदय के छाले उभर आए गुरु देव।

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  8. अत्यंत मार्मिक व अनूठा नवगीत सृजन...
    आ.गुरुदेव ढेरों शुभकामनाएं 🙏🏻

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  9. बहुत ही अद्भुत भावपूर्ण रचना आ0 🙏

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  10. बहुत ही भावपूर्ण रचना

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  11. मर्म को छेदता नवगीत।
    अद्भुत हृदय स्पर्शी।
    अभिनव प्रयोग।
    अभिराम, अपूर्व।

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