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Saturday, July 4, 2020

नवगीत : क्या आना : संजय कौशिक 'विज्ञात'


नवगीत 
क्या आना
संजय कौशिक 'विज्ञात' 

मापनी ~~16/14

इस वर्षा का भी क्या आना
उमस बढ़ा कर चली गई
तपते तन पर पड़ती छींटे 
देख धरा फिर छली गई।।

रेत उड़ाते बांध नदी तट 
वो भी कुछ प्यासे-प्यासे
सूखी नदिया सूखी लहरें
कोविड से पलटे पासे
प्यास मिलन की अपने पन की
आज मृत्यु तक टली गई।।

तोड़ आस विश्वास यहीं से
विरह सहे फिर प्रेमी मन
अर्ध मिलन की अर्ध रात सी
पीर सहे वे चन्दन वन
मनभर की जब बात नहीं तो
और यातना पली गई।।

माटी भी महकी सी कहती
छेड़ धुनें फिर गीत वही
पवन महकती लहर रही सी
चितवन की कह रीत वही
हर्ष विषाद मध्य कुछ बहकी
कहे कमी सी खली गई।।

संजय कौशिक 'विज्ञात'

17 comments:

  1. बहुत दिन बाद आपका नवगीत आया पर बहुत ही सुंदर लिखा आपने। वर्षा का उदासी भरा प्रारंभ और कोविड का कहर दोनों का यथार्थ चित्रण 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
    लाजवाब बिम्ब 💐💐💐💐💐

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  2. सही कहा उमस बढ़ा कर चली गई बहुत ही सुन्दर आपकी यह रचना शानदार

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  3. बिलकुल यथार्थ घटना बयां करती अनुपम रचना

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  4. सुघड़ सलोनी लेखनी कमर बांध लिख जाएं
    सदियों बाद भी इसी तरह चलेगी लहराय ॥
    अप्रतिम लेखन का शत प्रतिशत उद्देश्य स्थापित करती लेखनी को सादर नमन आ .विज्ञात ज़ी
    🙏 🌷

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  5. प्रतीकात्मक व्यंजना में चीसती पीर की अभिव्यक्ति ।

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  6. पानी की धार सी बहती है आपकी लेखनी👏👏👏👌👌👌👌👌👏

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  7. बहुत खूब।। प्रशंसनीय।। लेखनी को नमन

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  8. बहुत खूब।। प्रशंसनीय।। लेखनी को नमन

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  9. बहुत ही सुन्दर रचना 🙏 समसामयिक परिदृश्य को प्रस्तुत करती है

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  10. इस वर्षा का भी क्या आना
    उमस बढ़ा कर चली गई
    तपते तन पर पड़ती छींटे
    देख धरा फिर छली गई।।
    वाह!!!
    क्या बात!!!
    बहुत लाजवाब🙏🙏🙏

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  11. अर्ध मिलन की अर्ध रात सी
    पीर सहे वे चन्दन वन
    वाह वाह बहुत खूब बेहतरीन और लाजवाब सृजन गुरु देव जी आप को और आप की लेखनी को शत शत नमन

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  12. बेहतरीन रचना आदरणीय सुदंर बिंब,समसामयिक विषय,लाजबाब सर जी।

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  13. बहुत ही सुन्दर रचना 👌

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  14. सामायिक संदर्भ में नव व्यंजनाओं का हृदय स्पर्शी प्रयोग,
    संवेदनाओं का स्पष्ट बहाव बहुत सुंदर सृजन।
    अनुपम भावाभिव्यक्ति।

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  15. प्यास मिलन की अपनेपन की आज मृत्यु तक टली गई ।👏👏👏👏👏प्रतीकात्मक शैली में पीर का बहुत सुन्दर वर्णन आदरणीय 👏👏👏👏👏👏

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  16. बहुत सुन्दर रचना।

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  17. लाजवाब नवगीत

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