गीत
भारत माता
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~ 16/14
खण्ड खण्ड से खण्डित होकर
रोई होगी भारत माता
रक्त प्रवाहित अंग भंगमय
सदा निभाती माँ का नाता
1
कभी हाथ कटता है माँ का
फिर कभी शीश पर वार बने
जिन हाथ सुईं दी तुरपन को
वे भूल उसे तलवार बने
पंद्रह बार कटी टुकड़ो में
कौन जोड़ सामर्थ्य दिखाता।।
2
किस जात धर्म का काम कहूँ
या खुद्दारी का दोष कहूँ
सिंधु उर्मि सा मौन धारती
या फिर इसका संतोष कहूँ
कितने ज्वालामुखी फूटते
कौन पूछने हालत आता।।
3
बलिदानों की गौरव गाथा
आज स्वतंत्र दिखे जो भारत
बेटी है लक्ष्मी सी इसकी
पुत्र करे हुतातमी आरत
स्वार्थ तजे जो शीश चढाकर
आहुति हवन कुण्ड की लाता।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही सुंदर 👌👌👌
ReplyDeleteमानवीकरण के सुंदर प्रयोग से भाव उभर कर कथन को और मजबूत कर रहे हैं 💐💐💐💐
खण्ड खण्ड से खण्डित होकर रोई होगी भारत माता
ReplyDelete👌👌👌👌waaaahh अति सुंदर💐💐