नवगीत
झांझरिया
संजय कौशिक विज्ञात
मापनी 16/14
शुष्क पात की झांझरिया ने
शांत चित्त झकझोर दिया।।
उजड़े पन की टीस उठी कुछ
उपवन बहरे चिल्लाये
करुण क्रंदन करते करते
राग फूट कर घबराये
और रागनी भूली कोयल
जब सुनने का जोर दिया
शुष्क पात की झांझरिया ने
शांत चित्त झकझोर दिया।।
शून्य समान बिता ये जीवन
हलचल सारी भूला था
अतिक्रमण कष्टों का रहता
भूल श्वास दुख फूला था
रात अमावस की जब बीती
पूनम जैसा त्योर दिया।
शुष्क पात की झांझरिया ने
शांत चित्त झकझोर दिया।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही खूबसूरत नवगीत 👌👌👌
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक हॄदयस्पर्शी बोलते बिम्ब।
ढेर सारी बधाई शानदार सृजन की 💐💐💐
बहुत खूबसूरत नवगीत गुरुदेव आपका और शानदार बिम्ब ढ़ेरों बधाई आपको🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteअप्रतिम अद्भुत रचना इतनी अभिनव व्यंजनाएं पढ़ कर मन विभोर हो गया।
ReplyDeleteअद्भुत, लाजवाब, हृदयस्पर्शी रचना।🙇🙇🙇🙇🙇🙇💐💐💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति । शानदार गुरूदेव जी।
ReplyDeleteअनूठे बिंबों से सजा एक अद्भुत,आदर्श नवगीत👏👏👏👏👏💐💐💐💐🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteलाजबाव सृजन
ReplyDeleteसार्थक और सशक्त रचना।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
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