नवगीत
पस्त हुआ संयम
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~~16/16
पस्त हुआ संयम हरबारी
मौन लगा फिर देख खटकने
बिम्ब मुकुर हिय सौ-सौ चमकें
आहत पाकर लगे चटकने।।
धीर वीर का अनुपम गहना
शौर्य पराक्रम सब बिखरा सा
रूप सलौना करके खण्डित
चला गया था जो निखरा सा
रूप वही सौंदर्य निराला
और चमक को लगा झटकने।।
इस काल चक्र की भिन्न नियति
पाषाणी सी किलकार करे
कर्म धर्म के भेद बताकर
तोल तराजू व्यवहार करे
किसको कैसे कब ठगना है
खेल खेलता लगा पटकने।।
खिन्न हुआ मन शूल क्षणों में
रक्तिम अन्तस् पीर उगलता
बहता दिखता इन आँखों से
भीतर लावा एक सुलगता
पाकर खुशियों का पतझड़ सा
लगा कष्ट विष आज गटकने।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत सुन्दर गीत।
ReplyDeleteबुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामंनाएँ।
सुंदरतम नवगीत...
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