नवगीत
ध्वज तिरंगा
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~ 14/14
जो गगन को चूमता है
ध्वज तिरंगा वो हमारा
फिर अमर कहता कथाएँ
गीत झण्डा गर्व प्यारा।।
गूँजता है धुन मधुर में
गीत का ये राग बनकर
शंख की ये नाद उत्तम
द्वीप सागर शौर्य तनकर
वीरता के घोष में ये
हिन्द का है आज नारा।।
चन्द्र मंगल से ग्रहों पर
ये लहरता देख चमके
सौर मण्डल जानता है
कार्य इसके खूब दमके
ये हवा से बात करता
देख तूफानी फुहारा।।
हस्त रक्षक वीर योद्धा
प्राण तक अपनें गँवाते
वे मरे कब सब अमर हैं
शौर्य तीनों लोक गाते
इक पयो की धार इसमें
जानते जिसने निहारा।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही शानदार रचना 👌👌👌
ReplyDeleteदेशभक्ति में डूबी खूबसूरत अभिव्यक्ति 💐💐💐
अप्रतिम लेखन आदरणीय👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻💐💐🌹🌹🌹🙏🏻
ReplyDeleteशानदार लेखनी की ढेरों बधाइयाँ आदरणीय गुरुदेव जी👌🏽👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत ही शानदार देशभक्ति मन डूबी ओतप्रोत रचना आपकी बहुत डढ़िया
ReplyDeleteदेशभक्ति से परिपूर्ण शानदार सृजन👏👏👏👏जय हिंद जय भारती 🙏🙏🙏
ReplyDeleteदेशभक्ति से लबरेज शानदार रचना👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत खुब जी नमन
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,शुभकामनाएँ
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