नवगीत
शब्दशक्ति
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी ~14/12
सप्त सुर में गूँजती सी
काव्य की अनुपम छटा
नौ रसों के भाव नूतन
यौवना बाँधे जटा।।
तुक वसन तन पर निखरता
कामनी सी दंग करती
बिन तुकों की धार लज्जा
ओढ़नी सिर ओढ़ मरती
शब्द से शृंगार लेकर
अर्थ की उलझी लटा।।
ले गणित का ज्ञान गहरा
श्रेष्ठ विद्योत्मा यही है
हारते काली जहाँ पर
बात विदुषी सी कही है
छंद लेखन झट निभाये
शिल्प है ऐसा रटा।।
चित्र यूँ हितकर उकेरे
बिम्ब की अनुपालना से
दोष सारे लक्षणा के
छानती है छालना से
व्यंजना की ये तपस्या
शक्ति रखती जो सटा।।
संजय कौशिक 'विज्ञात'
बहुत ही शानदार अनोखा नवगीत 👌
ReplyDeleteअन्य सभी नवगीत से हट कर शब्दशक्ति का अनुपम उदाहरण।
नमन आपकी लेखनी को गुरुदेव 🙏
कविता को एक यौवना का रूप देने हुये, शब्द शक्ति से अलंकृत कर लिखा गया एक शानदार नवगीत👏👏👏👏👏👏👏
ReplyDeleteखबसूरत शानदार नवगीत
ReplyDeleteअद्भुत अद्भुत
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत नवगीत अद्भुत 👌👌🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteअनुपम कृति
ReplyDeleteनमन गुरु देव 🙏💐
शब्द शक्ति को मानवीय करण से कामिनी रूप देकर कामिनी के हर गुणों को सटीक उपमाओं से सजाया असाधारण नव गीत।
ReplyDeleteविद्योतमा, विदुषी जैसे चरित्रों की तुलना गीत से! अभिनव अनुपम।
अहा!!
बहुत सुंदर नवगीत 👌🙏
ReplyDeleteअद्भुत 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव भरा नवगीत 👌🙏गूरूदेव की अद्भुत लेखनी को नमन करतीं हूं।
ReplyDelete🙏🙏💐💐
बहुत सुन्दर l
ReplyDeleteहोने को कुछ भी हो सकता
ReplyDeleteअंतर्मन की शक्ति बड़ी
तीर न खाली जाएगा जब
लक्ष्यों पर हो आँख गड़ी
आप हमारे खेवनहारे
मांझी का आह्वान करें।
गिर-गिर कर चलना सिखलाया
गुरुवर का हम ध्यान करें।।
गुरुदेव की रचनाएं हम नवोदितों की प्रेरणास्रोत हैं।
नमन।
क्या खूब ही लिखी विज्ञात जी, सप्त सुर में गूंजती काव्य की अनुपम छटा... वाह
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