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Sunday, October 24, 2021

नवगीत : समरसता संदेश : संजय कौशिक 'विज्ञात'

नवगीत
समरसता संदेश
संजय कौशिक 'विज्ञात'


मापनी~ 16/14

समरसता संदेश तिरंगा
लेकर तन पर चलता है
भारत का अनुपम यह चोला
अनुपमता पर खिलता है।।

शेर हिरण जब एक घाट पर
रह कर के जल पीते हैं
रामराज्य के स्वप्न फलित हो 
दृश्य रूप में जीते हैं
पल-पल के ये बिम्ब निखरते
दर्पण दिखते रीते हैं
इंद्रधनुष के आकर्षण को
रूप हमारा छलता है।।

धन निर्धन की गहरी खाई
भामाशाहों ने पाटी
राज्य लुटा कर अपना स्वर्णिम
खाक गली की नित चाटी
अंग राज ने कुंडल देकर 
फिर निज छाती भी काटी
समरस बनकर रक्त नसों में
गंगा सा बन पलता है।।

सीख पुराणों से नित लेकर
समरसता को पढ़ना है
श्रेष्ठ प्रकृति है मार्ग प्रदर्शक
पग-पग हिम पर चढ़ना है
लालच और विकार सभी से
बचकर आगे बढ़ना है
गढ़ना है हर तालमेल यूँ 
समरस में जो ढलता है।।

धर्म हाट के बाजारों को
मिलकर बंद कराना है
सुप्त विवेक जगा कर अपना
हमको आगे आना है 
एक सूत्र का श्रेष्ठ तिरंगा
धार हृदय में गाना है
जलने दो रिपुओं को धुन से
समरस पर जो जलता है।।

©संजय कौशिक 'विज्ञात'

12 comments:

  1. नमन गुरुदेव 🙏
    बहुत ही शानदार रचना 👌👌
    शानदार बिम्ब और कथन 🙏

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  2. बेहद खूबसूरत नवगीत आदरणीय 👌👌

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  3. बहुत सुंदर रचना गुरुवर

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  4. बहुत सुंदर सृजन
    नमन गुरु देव 🙏💐

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. बहुत खूबसूरत नवगीत सुन्दर रचना

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  7. बहुत सुन्दर नवगीत।

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  8. क्या बात है गुरुदेव ! अनुपम रचना। बेहतरीन।

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  9. प्रेरणादायक, समरसता का संदेश देती सुंदर रचना!--ब्रजेंद्रनाथ

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