संजय कौशिक 'विज्ञात'
छंद के लिए आवश्यक मात्रा ज्ञान
इसके लिए पुनः प्रथम कक्षा के हिन्दी स्वर व्यंजन दोहराने आवश्यक होंगे और साथ उनका उच्चारण भी तो आइए शुरू करते हैं छंद का मूल आधार ज्ञान वर्णमाला के मात्राभार से ....
सर्व प्रथम उच्चारण देखें क्योंकि हिन्दी ऐसी भाषा है जिसमें जो उच्चारण किया जाता है वही लिखा भी जाता है शुद्ध उच्चारण शुद्ध लेखन अशुद्ध उच्चारण आप समझ सकते हैं ...
1 कण्ठ: अ, आ, क, ख, ग, घ, ड़ , ह, अ: ● 2 तालु: इ, ई , च, छ, ज, झ, ञ , य, श ● 3 मूर्द्धा , ऋ, ॠ , ट, ठ, ड, ढ, ण, र, ष ● 4 दन्त, लृ , त, थ, द, ध, न, ल, स ● 5 ओष्ठ ●उ, ऊ ● प, फ, ब, भ, म ● 6 नासिका = अं, ड्, ञ, ण, न्, म् ● 7 कण्ठतालु = ए, ऐ ● 8 कण्ठोष्टय = ओ, औ ● 9 दन्तोष्ठ्य = व
विश्वास है सभी पाठकों का श ष स का उच्चारण भी स्पष्ट हो सकेगा। लेख का मुख्य उद्देश्य उच्चारण स्थान नहीं है इसलिए इस संक्षिप्त जानकारी के पश्चात आइये मात्रा ज्ञान की तरफ बढ़ते हैं ....
हिन्दी वर्णमाला में 11 स्वर तथा 33 व्यंजन गिनाए जाते हैं।
स्वर- जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है। ये व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं। इन स्वरों की संख्या ग्यारह होती है
*अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ*
व्यंजन
कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्
चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्
टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्)
तवर्ग- त् थ् द् ध् न्
पवर्ग- प् फ् ब् भ् म्
अंतःस्थ- य् र् ल् व्
ऊष्म- श् ष् स् ह्
संयुक्त व्यंजन- क्ष=क्+ष , त्र=त्+र, ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान
अनुस्वार- इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिह्न {ं} है।
विसर्ग- इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न {:} है।
चंद्रबिंदु- जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु {ँ} लगा होता है। यह अनुनासिक कहलाता है। *लेकिन आजकल आधुनिक पत्रकारिता में सुविधा और स्थान की दृष्टि से चंद्रबिन्दु को लगभग हटा दिया गया है। परन्तु भाषा की शुद्धता की दृष्टि से चन्द्र बिन्दु का प्रयोग अवश्य होना चाहिए*
हलंत- स्वर रहित वर्ण के नीचे एक तिरछी रेखा {् } लगी होती है। यह रेखा हलन्त होती है।
मात्राभार:-
छंद का मुख्य आधार मात्रा ज्ञान कंठस्थ करने के पश्चात छंद की संरचना समझ लेना सरल और सहज हो जाता है। इसके साथ ही हम हमारी जिज्ञासा मात्रा भार में प्रयोग किये जाने वाले {12} अंक और {IS} चिह्न के रहस्य को समझ लेने की... तो आइए समझते हैं इन अंकों और चिह्नों के पीछे छिपे रहस्य को जो सूचक हैं वर्णों के मात्राभार के ... मात्रा भार दो प्रकार का होता है लघु और दीर्घ इनके न्यून मध्य और अधिक कुछ नहीं होता है। लघु (हृस्व) को लघु और दीर्ध को गुरु के नाम से जाना जाता है जिनके चिह्न इस प्रकार से हैं लघु का 1(I) गुरु का 2(S) वैसे तो इसे सरलता से समझा जा सकता है
*अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ* ये स्वर ही मात्रा हैं स्वर रहित व्यंजन के नीचे हलन्त लिखा जाता है जो अर्ध वर्ण कहलाता है। जिससे फिर संयुक्त वर्ण बनता है।
*अ, इ, उ, ऋ* ये चार मात्रा हृस्व, लघु, अंक 1, चिह्न I (ल) होती हैं। शेष आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ये सब मात्रा दीर्घ, गुरु, अंक 2, चिह्न S (गा) होती हैं। वैसे तो यह संक्षिप्त मात्रा ज्ञान ही पर्याप्त है।अब इसे समझने के लिए कुछ अभ्यास करके कंठस्थ किया जा सकता है। आइये शब्द समूह के मात्रा भार की गणना करके देखते हैं
वर्णों के मात्रा भार की गणना:-
छंद में प्रयुक्त होने वाले अंक चिन्ह आदि जिन्हें उनके शिल्प विधान के साथ दर्शाया जाता है उनको सरलता से समझते हैं और कण्ठस्थ करते हैं ....
(1) अ का व्यंजन के साथ मात्रा भार हृस्व, लघु, अंक 1, चिह्न I (ल) होता है। ठीक इसी प्रकार इ, उ, ऋ, इनको भी व्यंजन के साथ जोड़ने से इनकी मात्रा भी हृस्व, लघु, अंक 1, चिह्न I (ल) होता है।
(2) आ का व्यंजन के साथ मात्रा भार दीर्घ, गुरु, अंक 2, चिह्न S (गा) होता है। ठीक इसी प्रकार ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः इनको भी व्यंजन के साथ जोड़ने से इनकी मात्रा भी दीर्घ, गुरु, अंक 2, चिह्न S (गा) होता है।
अभ्यास के लिए उदाहरण:-
(1) किसी भी वर्ण में अनुनासिक 'चन्द्र-बिंदी' के आने से उसके मात्रा भार में कोई अंतर नहीं आता जैसे- सँग 11, ढँग 11, माँद 21, कँगन 111, कँचन 111,
(2) लघु वर्ण पर अनुस्वार के आने से उसकी मात्रा भार 2 गुरु/दीर्घ हो जाती है जैसे - संग 21, ढंग21, कंगन 211, कंचन 211, मंदिर 211, पतंगा 122, रंगीन 221, अत्यंत221
(3) गुरु वर्ण पर अनुस्वार आने से उसकी मात्रा का भार पूर्व की भांति 2 ही रहती है जैसे- आंगन 211, कौंधा 22, नींद 21, रौंदना 212, बैंगन 211
कुछ विद्वान अनुनासिक को व्यंजन नहीं मानते, मात्र स्वरों का ध्वनि गुण मानते हैं अनुनासिक स्वर के उच्चारण में मुँह और नासिका से हवा निकलती है जैसे आँ, ऊँ, एँ, माँ, हूँ, आएँ आदि में , जहाँ मात्रा शिरोधार्य हो अर्थात शब्द की रेखा के ऊपर होती है वहाँ पर अनुनासिक लिखने में छपाई के समय परेशानी होती है ऐसे में (चन्द्र बिंदु) अनुनासिक लिखने के स्थान पर (बिंदी) अनुस्वार लिखने की छूट दी जाती है जैसे नहीं, मैं, में आदि
संयुक्ताक्षर मात्रा भार ज्ञान :-
(4) (क्+ष = क्ष, त्+ र = त्र, ज् +ञ = ज्ञ) सहित अन्य संयुक्ताक्षर यदि अग्रिम वर्ण हो तो उसका मात्रा भार सदैव (लघु)1 ही होता है, जैसे – क्षण 11, क्षणिक 111, क्षय 11, त्रुटि 11, त्रिशूल 121, व्यसन 111, प्रकार 121, प्रभाव 121, श्रमदान 1121, श्रवण 111, च्यवन 111, त्रय 11 क्रय 11
(5) संयुक्ताक्षर में लघु 1 मात्रा जुड़ने पर उसका मात्रा भार (लघु) 1 ही रहता है, जैसे – त्रिवेदी 122, द्विवेदी 122, प्रिय 11, क्रिया 12, च्युत 11, श्रुति 11
(6) संयुक्ताक्षर में गुरु मात्रा के जुड़ने पर उसका मात्रा भार (गुरु) 2 होता है, जैसे– क्षेम 21, क्षेत्र 21, त्राहि 21, ज्ञान 21, श्री 2, श्रेष्ठ 21, श्राद्ध 21, द्वारा 22, श्याम 21, स्नेह 21, स्त्री 2, स्थान 21
(7) संयुक्ताक्षर से पहले पड़ने वाले लघु 1 मात्रा भार वाले वर्ण का मात्रा भार (गुरु) 2 होता है, जैसे– डिब्बा 22, अज्ञान 221, विज्ञान 221, शत्रुघ्न 221, उद्देश्य 221, विनम्र 121, सत्य 21, विश्व 21, पत्र 21
(8) संयुक्ताक्षर से पहले पड़ने वाले गुरु 2 वर्ण के मात्रा भार वाले वर्ण के मात्रा भार में कोई अन्तर नहीं होता है, जैसे-श्राद्ध 21, ईश्वर 211, नेत्र 21, पाण्डव 211, हास्य 21, आत्मा 22, सौम्य 21, भास्कर 211
(9) संयुक्ताक्षर के संदर्भ में विशेष नियम लघु गुरु (12) के कुछ अपवाद भी कहे गए हैं, जो मुख्यतया पारम्परिक उच्चारण पर आधारित होते हैं, जिनकी शर्त यह है कि उच्चारण अशुद्ध नहीं होना चाहिए।
जैसे– तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे 122, तुम्हें 12, जिन्हें 12, उन्हें 12, इन्होंने 122, जिन्होंने 122, उन्होंने 122, कुम्हार 121, कन्हैया122, मल्हार 121, कुल्हाड़ी 122
विवरण सहित: ऊपर बताए गए शब्दो को अपवादों के परिवार में माना जाता है इन संयुक्ताक्षर से पहले पड़ने वाले अक्षर सदैव ऐसा व्यंजन होते हैं जिसकी ‘ह’ वर्ण के साथ युति योग होने पर अन्य नवीन अक्षर का निर्माण हिन्दी वर्ण माला में नहीं हुआ है, अतः ‘ह’ से पहले पड़ने वाले अक्षर के युति योग से जब एक संयुक्ताक्षर बनता हैं तब उसका व्यवहार संयुक्ताक्षर जैसा नहीं होता है बल्कि एक नए वर्ण जैसा दिखने लगता है। (इसीलिए पहले वाले अक्षर पर संयुक्ताक्षर के नियम लागू नहीं होते हैं)।उदाहरणार्थ-( न् म् ल् का ‘ह’ के साथ युति योग करने से बनने वाले संयुक्ताक्षर म्ह न्ह ल्ह ‘एक नए वर्ण’ जैसा व्यवहार करते है) जिससे उनके पहले आने वाले लघु 1 का मात्रा भार गुरु 2 नहीं होता बल्कि लघु 1 ही होता है। पुनः विवेचन- हिन्दी वर्णमाला के कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग में पहले व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से दूसरा व्यंजन तथा तीसरे व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से चौथा व्यंजन बनता है। उदाहरणार्थ-
क्+ह=ख, ग्+ह=घ, च्+ह=छ, ज्+ह = झ, ट्+ह=ठ , ड् + ह = ढ, त्+ह=थ, द्+ह=ध, प्+ह=फ, ब्+ह=भ होता है किंतु- न्+ह=न्ह, म्+ह=म्ह, ल्+ह=ल्ह(कोई नया वर्ण नहीं, परन्तु व्यवहार नए वर्ण के समान ही होता है )
कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिनपर उपर्युक्त व्याख्या लागू नहीं होती है, जैसे नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211 आदि।
संजय कौशिक 'विज्ञात'