Wednesday, January 29, 2020

शराब के विनाश से .... संजय कौशिक विज्ञात

 
पञ्च-चामर छंद 
यह छंद वार्णिक छंद है, चार चरण के इस छंद में 8 लघु 8 गुरु क्रमानुसार (लघु गुरु) एक-एक करके कुल 16 वर्ण होते हैं कम से कम दो चरणों के युग्म में चरणान्त समनान्त रहेगा।
मात्रा भार- 1212121212121212 
का अनुकरण करके सृजन किया जा सकता है, पुनः दोहराता हूँ कि इस छंद में मात्र वर्ण विन्यास (लघु गुरु) सावधानी पूर्वक रखना होगा क्योंकि यह वार्णिक छंद है।
जगण रगण जगण रगण जगण गुरु (1) गण विधान से इसे ऐसे समझा जाता है। शौर्य भाव भरी रचना के लिए कवि इस छंद का प्रयोग करते हैं । इस छंद में रावण द्वारा विरचित ताण्डव स्त्रोत बहुत प्रसिद्ध है देखिये:- 

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले।
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌॥
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं।
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम॥

इसी शिल्प विधान का अनुकरण करती हुई एक रचना :- 

शराब के विनाश से .... संजय कौशिक विज्ञात
शराब के विनाश से समाज को बचा चलो। 
उठो प्रबुद्ध शुद्ध हो विचार से नहीं टलो॥ 

नशा बुरा समाज में विपक्ष में मिलो खड़े।
निगाह लक्ष्य भेद दे विराट भीड़ से अड़े॥ 

जड़ें उखाड़ दो अभी समाज स्वस्थ हो सके।
शराब बंद हो सके अशुद्ध बोल से पके॥

विभाग साथ दे तभी प्रयास जो हमीं करें। 
प्रधान भी विकास की उमंग ये सभी भरें॥ 

पिता करे न जुल्म यूँ शराब के प्रभाव से।
सहे न जुल्म बेटियाँ विशेष हों सुझाव से॥

नशा मिटे प्रहार से विरुद्ध युद्ध जो बनें।
विचार धार के यही समृद्ध हों सभी जनें॥ 

पिटें न नारियाँ कभी शराब का विनाश हो। 
उतार दो वहीं नशा न द्वेष का प्रकाश हो॥ 

पढ़ी न बेटियाँ जहाँ शराब के प्रताप से।
प्रकोप झेलते वहाँ लगे महान पाप से॥ 

पुकार जिन्दगी करे विलास भाव छोड़ दो। 
दिखें शराब बोतलें तुरन्त आप फोड़ दो॥ 

विवेकशीलता दिखे प्रहार रोग पे करो।
समाज ये नशे बिना बना चलो नहीं डरो॥ 

संजय कौशिक 'विज्ञात'

47 comments:

  1. पञ्च-चामर छंद की विस्तार से जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार ...हम जैसे नवांकुरों के लिए बहुत ही अमूल्य है यह जानकारी 🙏🙏🙏रचना बहुत ही सुंदर और सार्थक संदेश दे रही है। समाज में बढ़ता शराब का प्रयोग सिर्फ परिवार ही नही समाज के लिए भी घातक है और इसका विनाश होना आवश्यक है। खूबसूरत शब्दचयन रचना में चार चाँद लगा रहें हैं ....अप्रतिम सृजन की बहुत बहुत बधाई आदरणीय 💐💐💐💐

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    1. आपने तो लिखा है पञ्चचामर छंद
      आत्मीय आभार आपका नीतू जी

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    1. स्निग्धा जी आप भी बहुत सुंदर लिखती हैं पञ्चचामर

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    2. अति सुंदर छन्द रचना बधाई हों।

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  3. अति उत्तम

    आ0 एक गणेश वंदना चामर छन्द में
    गणेश वंदना

    आधार चामर छन्द 23 मात्रा,15 वर्ण
    गुरू लघु×7+गुरू
    **
    रिद्धि सिद्धि साथ ले,गणेश जी पधारिये,
    ग्रंथ हाथ में धरे ,विधान को विचारिये।
    देव हो विराजमान ,आसनी बिछी हुई,
    थाल है सजा हुआ कि भोग तो लगाइये।

    प्रार्थना कृपा निधान, कष्ट का निदान हो,
    भक्ति भाव हो भरा कि ज्ञान ही प्रधान हो ।
    मूल तत्व हो यही समाज में समानता,
    हे दयानिधे! दया ,सुकर्म का बखान हो ।

    ज्ञान दीजिये प्रभू अहं न शेष हो हिये
    त्याग प्रेम रूप रत्न कर्म में भरा रहे।
    नाम आपका सदा विवेक से जपा करें,
    आपका कृपालु हस्त शीश पे सदा रहे।


    अनिता सुधीर

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    1. अनिता जी बेहद सुंदर प्रस्तुति

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    2. वाह क्या कहने, बहुत ही सुंदर मुक्तक हुए, लाजवाब सृजन की बधाई और शुभकामनाएं आपकी कलम की सुगंध से नित नए छंद रूपी सुगंध उठती रहे

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  4. तुरन्त आप फोड़ दो शराब छोड़ दो बढ़िया

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    1. फुड़वा दीजिये राजकिशोर साहेब सच में बहुत बुरा रोग है ये
      आत्मीय आभार आपका

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  5. अप्रतिम... बहुत सुन्दर...वाह...

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  6. वाह अद्भुत ।
    सीखने की इच्छा जागृत हो गई है आदरणीय।,🙏🙏🙏

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    1. आपके लेखम कौशल से ही प्रेरणा पाते हैं सुधा जी नमन आपको
      आत्मीय आभार आपका

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  7. सामाजिक संदेश देती हुई एक बेहतरीन रचना है

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    1. आभार .... आत्मीय आभार अटल राम चतुर्वेदी साहेब

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  8. अद्भुत सृजन आदरणीय 👏👏👏👏👏👏आज आपकी इस पोस्ट के माध्यम से एक नयी विधा की जानकारी मिली।आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय।

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    1. सर्व प्रथम हार्दिक स्वागत है आपका
      आत्मीय आभार सराहना पाकर सृजन धन्य हुआ

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  9. बहुत ही सुन्दर आदरणीय आपकी रचना एक सुन्दर संदेश देती हुई बहुत बढ़िया

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  10. वाह!! कमाल की रचना आदरणीय

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    1. नमन आपको अनंत साहेब
      आत्मीय आभार

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  11. बहुत खूब सर जी।अति उत्तम रचना

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    1. बिनायक साहेब प्रेरणा पुंज हैं आप सराहना पाकर सृजन धन्य हुआ
      आत्मीय आभार आपका

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  12. प्ररेणा दाई सुंदर सृजन।

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  13. आ.सर जी बेहतरीन रचना ����

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  14. बहुत बढ़िया रचना आदरणीय संजय कौशिक सर 'शराब के विनाश से'
    शराबियों ने मचाया हुड़दंग
    शराब बेचारी हुई बदनाम,
    वो हलाहल सम नहीं है
    इमानदारी उसकी फर्ज नाम।

    कौन बहकता नहीं बिन पियें
    यह बता, शराब बस बदनाम,
    बुरे सपनों से लगता है मानना
    नशेड़ी है बिन पियें सुबह श्याम।

    अजीब अजीब नशे पाल रखें है
    लोग बदहवास पर नहीं बदनाम,
    बदसलूकी की चरम सीमा गांठी
    लोगोंका जीना करदिया है हराम।

    फिर भी देखो मात्र शराब बदनाम।।

    प्रकाश कांबले
    ३१-१२-२०१९




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  15. अद्भुत प्रस्तुति आदरणीय 👌👌

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    1. आप से प्रेरणा प्राप्त कर बढ़ रहे हैं
      मार्गदर्शन अपेक्षित रहेगा अनुराधा जी
      आत्मीय आभार आपका

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  16. Bahut Mast Kavita hai yah aapki main aapka fan Nilesh Bhardwaj mob. 9462026800

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    1. पहचाना बिल्कुल
      अनुज खुश रहो

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  17. शानदार स्रजन

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  18. मानव निर्मित बुराई की पड़ताल करते हुए समाधान तक पहुंचने की कोशिश में जागरण की एक बेहतरीन रचना, इस हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई

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    1. आत्मीय आभार आपका बघेल सहाब, सुंदर टिप्पणी के लिये पुनः आत्मीय आभार

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  19. उत्तम जानकारी एवं छन्द-रचना। जय जय

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    1. सतविंदर राणा जी आत्मीय आभार

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  20. आदरणीय कौशिक जी , बहुत ही सुंदर रचना है ,पंचचामर छंद के शिल्प का ज्ञान कराने के लिए आपका बहुत धन्यवाद । यह हमारा सौभाग्य है कि आप से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

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    1. आत्मीय आभार आपका भारत भूषण वर्मा भूषण जी

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  21. ----भारत भूषण वर्मा

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  22. इस छंद की स्पष्ट जानकारी सहित, बहुत ही बेहतरीन रचना... बधाई हो सर जी💐💐💐

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    1. सादर नमन एवं आत्मीय आभार आपका

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