Wednesday, January 29, 2020

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ .. संजय कौशिक 'विज्ञात'


*बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ* 

भारत देश के लिए भ्रूण हत्या एक अभिशाप से कम नहीं देश के विभिन्न राज्यों में लड़को की अपेक्षा लड़कियों का लिंगानुपात देखा तो शर्मनाक स्थति है।यधपि परिवार की धुरी बेटा और बेटी दोनों पर टिकी है यथा.. 

"पुत्र सुता दोनों भले, सूर्य चन्द्र दो नैन।
दोनों की गरिमा अलग, होते कब दिन रैन॥"

तथापि यह एक मूर्खतापूर्ण मानसिकता से अधिक कुछ नहीं कही जा सकती है। भ्रूण हत्याओं के कारण लिंगानुपात तेजी से घटता जा रहा है । देश व समाज को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।प्रमुख है अविवाहित वर्ग की निरन्तर वृद्धि, परिणाम नशाखोंरि ,नारी हिंसा, उत्पीड़न और अनेक दण्डनीय अपराधों की संलिप्तता में  वृद्धि  ; यदि ऐसा ही रहा तो बहुपतित्व प्रथा आने में देरी नहीं है ।
समाज के कुछ हितैषी लोग चिंता ग्रस्त रहते हैं  किन्तु आँखों के सामने अन्धकार छाया रहता है ।
 भारतीय केंद्रीय सरकार ने गहन अध्य्यन किया । गहरे शोध से यह तथ्य उभर कर सामने आया कि अशिक्षित वर्ग किसी विशेष पीड़ित मानसिकता के कारण भ्रूण हत्याएं करवाता आ रहा है;और भ्रूण हत्याओं का मुख्य कारण पीड़क वर्ग की तुच्छ मानसिकता है जो विवश करती है जघन्य अपराध करने को विशेषकर दहेज़ प्रथा, छेड़छाड़,कुकृत्य बेटी को आने से पहले ही मौत के घाट उतारना  ;इस प्रकार  रहस्यमयी दर्दनाक रोग से पीड़ित समाज के अशिक्षित वर्ग का इलाज करने हेतु वर्तमान भाजपा केंद्रीय सरकार दृढ़ संकल्पित हुई औषधी खोजी गई और इलाज के लिए जुट गई। वर्तमान प्राधान मंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में प्रारम्भ हुए इलाज का नाम रखा गया *बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ* अभियान। देखा और समझा जाए तो इस अभियान के आगाज की आवश्यकता आज से बहुत पहले थी। पर तात्कालीन सरकारें इस विषय को न तो गंभीरता से ले पाई और न समझ ही पाई, फिर निदान दे पाना और समाज को जागरूक करने के विषय में कुछ भी सोच पाना असंभव ही कहा जा सकता था। फिर इस प्रकार के दूरगामी परिणाम की सोच के अभियान चला पाना अति दुष्कर कार्य की कल्पना करना भी बेमानी कही जाए तो गलत न होगा।और इस गलत काम की शुरुवात गलत तरीके से हुई तो परिणाम भी गलत ही होंगे इसमें भी कोई संदेह नहीं। विज्ञान के लाभ अपने पर इसके प्रयोग गलत तरीके से किये गए चिकित्सकों को अपनी दुकानें चमकाने के लिए गलत तरीकों से प्रचार करने की छूट प्राप्त थी कोई अंकुश नहीं था,

ऐसे में वर्तमान माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में बनी केंद्रीय भाजपा सरकार ने इस समस्या को बखूबी गम्भीरता से लिया, समझा और इसके कारणों पर भी गिद्ध जैसी पैनी दृष्टि लगा कर इसका समाधान रूपी रामबाण इलाज भी खोज निकाला। *बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ*।डूबती हुई आँखों ने नए युग के नए सूरज को सलाम किया।22जनवरी 2015 को ऐतिहासिक स्थल पानीपत हरियाणा प्रान्त के शंखनाद को वैश्विक पटल पर सुना गया।

"खानदान वृत बन सुता, उत्तम ले संस्कार।
जाती है ससुराल में, कुशल करे व्यवहार॥"

बेटियों के आगमन से समाज फलेगा-फूलेगा पढ़ने से स्वतः ही शिक्षित हो जायेगा किसी को कहना नहीं पड़ेगा 'तमसो मा ज्योतिर्गमय'। 

सभी विभाग यथा संभव सहयोग प्रदान कर रहे हैं स्वास्थ्य विभाग ने लिंग जांच कर्ता की सूचना प्रेषित करने वालों को 10 लाख तक इनाम वितरित किये हैं। ताकि इस नेक कार्य को पूर्ण तथा सफल  रूप प्रदान किया जा सके। शिक्षा विभाग गणतंत्र दिवस तथा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नवजात बालिकाओं एवं उनकी माताओं को सम्मानित कर प्रोत्साहित करता है ।सरकार ने अनेक योजनाओं के तहत जैसे अनमोल बेटी है, रक्षक योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, गर्ल चाइल्ड प्रोटेक्शन योजना तथा मुख्यमंत्री कन्यादान योजना से बेटियों को सम्बल प्रदान किया है।मुख्य मंत्री शुभ लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, सुकन्या समृद्धि, लाडली लक्ष्मी योजनाओं ने बेटी को धरती पर लाने का प्रोत्साहित रूप अदा किया है। सरकार के साथ-साथ विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में उपलब्धियाँ प्राप्त करने वाली छात्राओं को टेलेंट अवार्ड, तथा आंगनबाड़ी केंद्रों में गुड्डा-गुड्डी बोर्ड लगा कर सम्मान दिया जा रहा है;जिनमें 6 वर्ष तक कि बालिकाओं को सम्मिलित किया जाता है। प्रशासन पूरी तरह से लोगों की मानसिकता परिवर्तित करने के लिए प्रयासरत है।  

*हरियाणा के पानीपत से हुए चतुर्थ युद्ध के आगाज़ ने* हरियाणा की ही नहीं बल्कि देश भर की बेटियों को नए दृष्टिकोण से देखने पर विवश किया है।विशेष उपलब्धि प्राप्त आदरणीया सुषमा स्वराज, कल्पना चावला, संतोष यादव, साक्षी मलिक, गीता-बबिता, विनेश फौगाट, मानसी छिल्लर, सपना ने बेटियों के इतिहास को स्वर्णिम आकार प्रदान किया है। यह राष्ट्र के लिए गर्व की बात है। सबसे अधिक गर्वमय के क्षण तो तब सामने आए जब आँकड़ों की बात हुई इस युद्ध के आगाज़ से पूर्व अकेले हरियाणा में ही 1000 लड़कों पर 930 लड़कियां रह गई थी। किंतु नवम्बर 2018 के सर्वे में हरियाणा में बेटियों का स्तर चमत्कारिक रूप से बढ़ा है यह संख्या 930 से बढ़ कर 1034 हो गई है यह तो अकेले करनाल का आंकड़ा है। हरियाणा के अन्य जिलों में भी स्थिति सुधार पर है।


समाज में पनप रही संकीर्ण मानसिकता भ्रांतियों के मध्य दीमक है जिसने समाज को खोखला कर दिया बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान सफल और कारगर सिद्ध हुआ ।देखते ही देखते बेटियां युद्ध भूमि की शूरवीर यौद्धा बन गयी  ।युद्ध के समय शत्रु से लड़ते समय संधान किया जाने वाला ब्रह्मास्त्र विजय दिलाने के लिए वचन बद्ध होता है।यह ब्रह्मास्त्र विजय पताका फहराएगा इस विश्वास के साथ सरकार जन-मन को ले आगे बढ़ी ।क्योंकि इससे सामाज कीअनेक बुराइयों का समूल नाश किया जा सकता है। एक तो बेटियों की भ्रूण हत्याओं पर आज पूर्णतया रोकथाम लग चुकी है। और दूसरा अशिक्षित वर्ग शिक्षित हो चला है जिससे भविष्य में इस प्रकार की सुरसाभिमुख सामाजिक लिंगानुपात की समस्या से देश के समक्ष विकट परिस्थितियों में कमी आई है।कुछ राज्यों में बेटियो की स्थिति अभी भी शोचनीय है वहां अभी प्रयास अधुरे लग रहें हैं। मन में विश्वास है भारत ही नही विश्वभर में बेटियों को उनका अधिकार प्राप्त होगा । समाज कृत कृत्य हो उठेगा। अंततः यह स्वप्न बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ सफल साकार सिद्ध होगा । जीससे बेटियों के स्वाभिमान के अन्य चमत्कार भी विश्वमंच अवश्य देख सकेगा। 

संजय कौशिक 'विज्ञात'

21 comments:

  1. बहुत सुन्दर सर जी हार्दिक बधाई हो

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  2. भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध पर तत्कालीन सरकार की भूमिका सच में प्रशंसनीय है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी इस अपराध को रोकने में हुई देरी को नकारा नही जा सकता पर देर से ही सही पर परिवर्तन नजर आ रहा है यह देश और समाज के लिए खुशी की बात है।इतने गंभीर विषय पर बहुत ही शानदार लेखन है आपका ....नमन 🙏🙏🙏

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  3. एक गम्भीर ज्वलन्त समस्या पर शानदार लेख । बधाई स्वीकारें विज्ञात जी

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  4. सुशीला जोशी .....

    गम्भीर ज्वलन्त समस्या पर लिखा शानदार लेख ।।बधाई स्वीकारें विज्ञात जी ।

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  5. बहुत ही समसामयिक शानदार लेख👏👏👏👏👏👏

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  6. आ.सर जी बहुत सुंदर लेख बधाई व शुभकामनाएं 🙏🙏

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  7. आदरणीय संजय कौशिक सर आपकी भावना अतिउत्तम
    है मगर तथ्य से मै कदापि सहमत नहीं हूँ। आपके लेख के तथ्यों को देखने से लगता है की आप भ्रमित है। कालांतर से महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं। सीता माता, द्रोपदी (महाभारत) और भी ऐसे हजारों उदाहरण दिये जा सकते हैं जिसमें पुरूष मानसिकता झलकती है और जहां पुरूष प्रधान समाज का वर्चस्व हो वहां महिला गौण हो जाती है। साथही मनुस्मृति जैसे ग्रंथ महिला प्रताड़ना के कारण बन जाते है। भारत का संविधान जो पुरूष हो या महिला किसी भी जाति, धर्म, पंथ कोई भी भाषा, कही पर भी रहने वाला हो किसी से भी भेदभावपूर्ण व्यवहार करने की इजाजत नहीं देता है। सभी को समान मौलिकअधिकार / हक सामाजिक, आर्थिक विकास, शैक्षणिक, न्यायिक आदि के अधिकार प्रदान करता है। एक महिला भी भारत की प्रेसिडेंट, प्रधानमंत्री बन सकती है। कोई भी पुरूष किसी जाति धर्म का हो बडे से बडे औदे पर पहुंच सकता है।
    गरीब तबके का व्यक्ति लिंग परीक्षण करवा कर भृण हत्या करवाना यह तथ्य के परे है। उसका अपना पेट पालना मुष्किल है ऐसे मे लिंग परीक्षण के बारे मे कोई कैसे सोच सकता है। यह सोच रसूखदारो /श्रीमंतो की है जिन्हें लिंग परीक्षण कर बेटा चाहिए ताकि पैसा मालमत्ता उन्ही के पास रहे और इसलिए बेटीओ के साथ भेदभावपूर्ण आचरण। मगर भारतीय संविधान सभी को वह पुरुष हो या महिला सभी को सभी को समान रुप से जीने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। सरकारे संविधान अनुरूप कार्य करे और उसका अनुपालन करे तो कोई भी अनर्थ नहीं हो सकता है। डॉ बाबा साहब आंबेडकर ने संविधान को देश को अर्पित करते वक्त कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों नहीं हो या बूरा क्यो नही हो उस की सफलता उसे कार्यान्वित करने सरकारों पर निर्भर करेगा। इसलिए संविधान अच्छा है या. बुरा इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है।
    इतने सारे भृण हत्या, रेप महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के बहुत सारे कारण है। मोबाइल फोन, इंटर्नेट, सिनेमा और हम सब जो अपने कार्य मे इतने बीझी हो गये की हमारे पास हमारे बच्चों के लिए समय नहीं है और इस के लिए जिम्मेदार हम ही हैं हम बच्चों को सही शिक्षित नहीं कर पाते हैं या कहें सही संस्कार नहीं दे पा रहे हैं। दुसरो को दोषी ठहराया जाना आसान है।
    इनसब कारणों से मै आपसे असहमत हूँ सर माफी चाहता हूँ आदरणीय।
    प्रकाश कांबले
    ०२-१-२०२०

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    1. आप कौन हैं मुझे पता नहीं क्यों कि आप का नाम दिखा नहीं रहा। परंतु आपने सर को जो उत्तर लिखा है उससे प्रतीत होता है कि आपका अध्ययन तर्क आधारित नहीं है या फिर आपने अध्ययन ही नहीं किया है।

      मनुस्मृति की बात आपने कही है, मनुस्मृति के ही अध्याय 3 श्लोक नं 56 मे लिखा है, "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः"

      निस्संदेह कुछ श्लोक नारीविरोधी भी हैं मनुस्मृति में पर ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक ही उठना चाहिए कि दो विरोधाभासी श्लोक एक ही व्यक्ति कैसे लिख सकता है? इसका सीधा सा जवाब है कि इसमें बाद में विसंगतियाँ लाई गई। कुमारिल भट्ट ने इसमें अनेक विसंगति उत्पन्न की।

      ऐसे ही अन्य ग्रंथों का भी आपको तर्कसंगत अध्ययन करना चाहिए। और वामपंथियों के मूर्खतापूर्ण तथ्यों और भ्रम जाल से मुक्त होना चाहिए।

      उम्मीद है आप इस पर अमल करेंगे।

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  8. आदरणीय विज्ञात सर बहुत ही शानदार लेख

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  9. बहुत बहुत बधाई आपको बेटियों के लिए बहुत सुन्दर लिखा आपने बहुत बढ़िया

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  10. सामायिक चिंतन देता सटीक आलेख ।
    सबसे ज्यादा अहम भूमिका युवा वर्ग की होनी चाहिए जो दृढ़ से दृढ़ फैसले लें, जो समाज और देश हित के साथ साथ बेटियों के हित में हो ।
    कोई माता पिता स्वयं नहीं चाहे तो कोई मजबूर नहीं कर सकता उन्हें भ्रूण हत्या के लिए ।
    यथार्थ सार्थक लेख ।

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  11. बहुत सुंदर और सटीक लेख 👌👌

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  12. Superb article, keep the effortcontinue.

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  13. Superb article, continue the effort

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  14. 10:35 PM
    आदरणीय संजय कौशिक सर आपकी भावना अतिउत्तम
    है मगर तथ्य से मै कदापि सहमत नहीं हूँ। आपके लेख के तथ्यों को देखने से लगता है की आप भ्रमित है। कालांतर से महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं। सीता माता, द्रोपदी (महाभारत) और भी ऐसे हजारों उदाहरण दिये जा सकते हैं जिसमें पुरूष मानसिकता ......आदरणीय मत आपका है आप सहमत हो या असहमत कोई बाध्यता नहीं।सकारात्मक पक्ष को अवश्य देखे।आज नारी शक्ति ने कितने आयाम स्थापित किये हैं।कृपया उधर भी ध्यान दें।कहाँ मनु ,द्वापर त्रेता में विचरण कर रहें हैं ;चलिए अच्छी बात है फिर आप अपाला ,घोषा ,सावित्री ,लक्ष्मीबाई ,,,,,,,के नाम को कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने समाज को नित्य चरैवेति का सन्देश देकर कृतार्थ किया।रही बात मीडिया और युवा की तो यहाँ भी दोनों पक्ष हैं। आईएस, एचसीएस ,में कितने धैर्य और लग्न की आवश्यकता होती है। वहां युया वर्ग ही कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। यह तो सत्य हैं हम परिवार, संस्कार से बिछड़ रहे हैं।लेकिन उसमें भी नारी दोषी नहीं हैं।न कबीरा दोषी है न तुलसी दोषी है।उसका अपने तरीके से भाव निकलने वालों में ही कहीं न कहीं दोष है।अब देखिये ढोर, गवाँर ,शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना की अधिकारी आप कहेंगे की तुलसी भी नारी विरोधी है जबकि इसमें कहीं भी ये 5 ताड़ना की अधिकारी शब्द नहीं है सच्चाई तो यही रही होगी कि जो ढोर है,जो समाज में अशिक्षा,शूद्रता फैलता है, जो नारी पशुवत व्यवहार करती है सब ताड़ना के अधिकारी हैं।ढोर, गवाँर-शूद्र,पशु-नारी सकल ताड़ना की अधिकारी भी तो हो सकता हैं। मान्यवर किसी को आधा गिलास खाली दिखाई देता है किसी को आधा भरा क्षमा कीजिये मात्र सोच पर निर्भर करता है।
    लेकिन संजय कौशिक 'विज्ञात' बधाई हो बहुत सुन्दर पक्ष रखा। सार सार को गहि लेत थोथी देत उड़ाय की तर्ज पर निरन्तर बढ़ते चलो।

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  15. Bhut sunder sir 🙏🙏....Rakesh

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